Close Menu
Rashtra SamvadRashtra Samvad
    Facebook X (Twitter) Instagram
    Rashtra SamvadRashtra Samvad
    • होम
    • राष्ट्रीय
    • अन्तर्राष्ट्रीय
    • राज्यों से
      • झारखंड
      • बिहार
      • उत्तर प्रदेश
      • ओड़िशा
    • संपादकीय
      • मेहमान का पन्ना
      • साहित्य
      • खबरीलाल
    • खेल
    • वीडियो
    • ईपेपर
      • दैनिक ई-पेपर
      • ई-मैगजीन
      • साप्ताहिक ई-पेपर
    Topics:
    • रांची
    • जमशेदपुर
    • चाईबासा
    • सरायकेला-खरसावां
    • धनबाद
    • हजारीबाग
    • जामताड़ा
    Rashtra SamvadRashtra Samvad
    • रांची
    • जमशेदपुर
    • चाईबासा
    • सरायकेला-खरसावां
    • धनबाद
    • हजारीबाग
    • जामताड़ा
    Home » क्या सचमुच सिमट रही है दामन की प्रतिष्ठा?
    Breaking News Headlines मेहमान का पन्ना

    क्या सचमुच सिमट रही है दामन की प्रतिष्ठा?

    Devanand SinghBy Devanand SinghMarch 29, 2025No Comments5 Mins Read
    Share Facebook Twitter Telegram WhatsApp Copy Link
    Share
    Facebook Twitter Telegram WhatsApp Copy Link

    क्या सचमुच सिमट रही है दामन की प्रतिष्ठा?

    समय के साथ परिधान और समाज की सोच में बदलाव आया है। पहले “दामन” केवल वस्त्र का टुकड़ा नहीं, बल्कि मर्यादा और संस्कृति का प्रतीक माना जाता था। पारंपरिक वस्त्रों—साड़ी, घाघरा, अनारकली—को महिलाओं की गरिमा से जोड़ा जाता था। “दामन की प्रतिष्ठा” अब भी बनी हुई है, परंतु उसकी परिभाषा बदल चुकी है। परंपरा और आधुनिकता के बीच संतुलन बनाए रखना आवश्यक है। क्या छोटे वस्त्र संस्कारों का ह्रास हैं, या फिर मानसिकता का परिष्करण? क्या स्त्री का सम्मान उसके पहनावे से तय होना चाहिए, या फिर उसकी बुद्धिमत्ता, शिक्षा और आत्मनिर्भरता अधिक महत्वपूर्ण हैं?

    -प्रियंका सौरभ

    समय की करवटों ने जब फैशन के रेशों को बुना, तब परिधान भी परिवर्तनों की सीढ़ियाँ चढ़ते चले गए। परंतु क्या इस बदलाव ने “दामन की प्रतिष्ठा” को भी प्रभावित किया है? क्या आधुनिक वस्त्रों ने पारंपरिक गरिमा को बिसरा दिया, या फिर समाज की दृष्टि अब और व्यापक हो चली है? समय के साथ परिधान और समाज की सोच में बदलाव आया है। पहले “दामन” केवल वस्त्र का टुकड़ा नहीं, बल्कि मर्यादा और संस्कृति का प्रतीक माना जाता था। क्या हम ये कह सकते है कि जैसे-जैसे दामन छोटा हुआ वैसे-वैसे मर्यादा और संस्कृति भी घटती गई।

    पारंपरिक दामन: गरिमा का प्रतीक

    “दामन” केवल वस्त्र का टुकड़ा नहीं, यह मर्यादा का आँचल, संस्कृति की पहचान और शालीनता की परिधि रहा है। भारतीय नारी के परिधान—साड़ी, घाघरा, अनारकली और दुपट्टा—न केवल उसके सौंदर्य को सँवारते थे, बल्कि उसकी गरिमा और मर्यादा का भी पर्याय बने। पहले “52 गज़ के दामन” का अर्थ भव्यता, शालीनता और गौरव से लिया जाता था। “दामन संभालना” मात्र वस्त्रों का सहेजना नहीं, बल्कि अपनी प्रतिष्ठा और चारित्रिक दृढ़ता को बचाए रखना भी था। समाज ने मर्यादा को बाह्य आवरण में समेट दिया, जिससे व्यक्तित्व का आकलन केवल परिधानों से होने लगा।

    बदलते परिधान, बदलती परिभाषाएँ

    समय अपनी गति से प्रवाहमान रहा, और उसके साथ समाज की सोच भी विस्तारित होती चली गई। अब वह समय नहीं, जब गरिमा की परिभाषा केवल कपड़ों की सिलवटों में समेट दी जाती थी। आज महिलाएँ अपने आत्मविश्वास की उड़ान को चुन रही हैं—जींस, टॉप, स्कर्ट, फॉर्मल सूट और इंडो-वेस्टर्न परिधानों के साथ। परिधान अब मात्र देह को ढकने का माध्यम नहीं, बल्कि व्यक्तित्व और विचारों की अभिव्यक्ति का स्वरूप बन गए हैं। परंपरा और आधुनिकता के ताने-बाने से एक नया फ्यूज़न जन्म ले चुका है, जो संस्कृति और स्वतंत्रता के बीच संतुलन स्थापित करता है। गरिमा अब वस्त्रों की परिधि में सीमित नहीं, बल्कि आत्मसम्मान और व्यवहार में प्रतिबिंबित होती है।

    क्या आधुनिकता ने दामन की प्रतिष्ठा को धूमिल किया?

    यह एक जटिल प्रश्न है, जिसकी गूँज समय और समाज दोनों में सुनी जा सकती है। क्या वस्त्रों का लघु होना संस्कारों का ह्रास है, या फिर मानसिकता का परिष्करण? क्या किसी स्त्री का सम्मान उसके पहनावे तक सीमित रहना चाहिए? क्या उसकी बुद्धिमत्ता, शिक्षा और आत्मनिर्भरता उससे अधिक मूल्यवान नहीं? क्या परिधान की लंबाई उसके विचारों की ऊँचाई से अधिक महत्त्व रखती है? कुछ का मत है कि आधुनिकता ने संस्कृति को धूमिल किया, परंतु अन्य इसे आत्म-अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के रूप में देखते हैं। वास्तविकता यह है कि गरिमा बाह्य आवरण में नहीं, बल्कि आचरण और आत्मसम्मान में होती है।

    समाज का नजरिया और स्त्रियों की स्वतंत्रता

    अब भी कई स्थानों पर परिधानों को लेकर परंपरा की बेड़ियाँ जकड़ी हुई हैं। “ऐसे वस्त्र मत पहनो, लोग क्या कहेंगे?” जैसे शब्द आज भी अनगिनत घरों की दीवारों से टकराते हैं। “कपड़ों से संस्कार झलकते हैं!” “लड़की हो, थोड़ा सभ्य कपड़े पहनो!” “ऐसे खुले विचार नहीं, यह हमारी संस्कृति नहीं!” परंतु क्या परिधान ही संस्कारों की कसौटी है? समाज को इस सोच से आगे बढ़ना होगा कि स्त्रियों की मर्यादा वस्त्रों से नहीं, उनके विचारों से आँकी जानी चाहिए। समय के प्रवाह में समाज ने अनेक रूप बदले हैं, परंतु स्त्रियों की स्वतंत्रता को लेकर उसकी सोच अब भी दो ध्रुवों में बँटी हुई प्रतीत होती है। एक ओर आधुनिकता की लहर उन्हें आत्मनिर्भर और स्वतंत्र बना रही है, तो दूसरी ओर परंपरा की जड़ें अब भी उनकी उड़ान में अवरोध उत्पन्न करती हैं। सवाल यह उठता है—क्या स्त्री सचमुच स्वतंत्र हुई है, या यह केवल एक भ्रम है?

    संस्कृति और स्वतंत्रता: संतुलन आवश्यक है

    “दामन की प्रतिष्ठा” अब भी बनी हुई है, बस उसकी परिभाषा ने एक नया रूप धारण कर लिया है। परंपरा हमारी जड़ों से जुड़ी होती है, लेकिन जड़ों को मजबूती देने के लिए शाखाओं का फैलना भी जरूरी है। संस्कृति को आधुनिकता के साथ संतुलित करना आवश्यक है। महिलाओं को अपनी इच्छा से परिधान चुनने की स्वतंत्रता मिलनी चाहिए। असली गरिमा पहनावे में नहीं, बल्कि विचारों, कर्मों और आत्म-सम्मान में बसती है। समय की सुइयाँ कभी पीछे नहीं दौड़तीं। परिधान बदल सकते हैं, परंतु सम्मान और गरिमा की वास्तविक पहचान व्यक्ति के आचरण और आत्मसम्मान में होती है। “दामन की प्रतिष्ठा” आज भी जीवंत है, बस उसका अस्तित्व अब कपड़ों की सिलवटों में नहीं, बल्कि आत्मविश्वास और स्वतंत्रता के विस्तृत आकाश में देखा जाता है।

    कई बार जब “दामन की प्रतिष्ठा” पर चर्चा होती है, तो असल में यह संस्कृति और स्वतंत्रता के बीच संतुलन का मामला होता है। परंपराएँ समाज की जड़ों से जुड़ी होती हैं, लेकिन उनका बदलते समय के साथ ढलना भी जरूरी है। महिलाओं को यह अधिकार होना चाहिए कि वे जो पहनना चाहें, पहन सकें, बिना किसी सामाजिक दबाव के। गरिमा और मर्यादा पहनावे से ज्यादा व्यक्ति के व्यवहार, सोच और कृत्यों में झलकती है। संस्कृति और आधुनिकता में संतुलन बनाए रखना सबसे अच्छा समाधान है। फैशन और पहनावा बदल सकते हैं, लेकिन सम्मान और गरिमा व्यक्ति की सोच और कर्मों से आती है। “दामन की प्रतिष्ठा” आज भी बनी हुई है, बस उसकी परिभाषा बदल गई है – यह अब सिर्फ कपड़ों में नहीं, बल्कि व्यक्तित्व और आत्म-सम्मान में दिखती है।

    Share. Facebook Twitter Telegram WhatsApp Copy Link
    Previous Articleराणा सांगा पर गलतबयानी से समाज में विभाजन और नफरत की भावना को बढ़ाना उचित नहीं
    Next Article भारत के सशक्त स्वास्थ्य मोर्चें का दुनिया ने लोहा माना

    Related Posts

    कल आक्रोशित जनमानस जुटेंगे उपायुक्त कार्यालय पर

    May 21, 2025

    झारखंड के शिक्षा मंत्री रामदास सोरेन ने सेंट्रल किचन का किया निरीक्षण कहा बहुत जल्द 100 स्कूल पर एक सेंट्रल किचन बनाया जाएगा

    May 21, 2025

    जमशेदपुर सदर प्रखण्ड में आम फलोत्पादन के लिए बाजार उपलब्धता हेतु प्रखंड स्तरीय

    May 21, 2025

    Comments are closed.

    अभी-अभी

    कल आक्रोशित जनमानस जुटेंगे उपायुक्त कार्यालय पर

    झारखंड के शिक्षा मंत्री रामदास सोरेन ने सेंट्रल किचन का किया निरीक्षण कहा बहुत जल्द 100 स्कूल पर एक सेंट्रल किचन बनाया जाएगा

    जमशेदपुर सदर प्रखण्ड में आम फलोत्पादन के लिए बाजार उपलब्धता हेतु प्रखंड स्तरीय

    भारतरत्न स्वः राजीव गाँधी के पुण्यतिथि पर कांग्रेसियों ने तिलक पुस्तकालय में उनके कार्यों को याद कर किया नमन

    तेलंगाना राज्य बार काउंसिल राजेश शुक्ल को अधिवक्ता रत्न से सम्मानित करेंगा

    छत्तीसगढ़ से गुजरने वाली 11 ट्रेने 28 जून तक रद्द,झारखंड-उड़ीसा यात्रियों की मुश्किलें बढ़ीं

    समर इंटर्नशिप प्रोग्राम के लिए सोना देवी विश्वविद्यालय के सात छात्र छात्राओं का चयन

    राष्ट्र संवाद हेडलाइंस

    हाँ मैं पागल हो गया पापा

    मेरा भारत महान?

    Facebook X (Twitter) Telegram WhatsApp
    © 2025 News Samvad. Designed by Cryptonix Labs .

    Type above and press Enter to search. Press Esc to cancel.