क्या अब नजदीक है ‘उदार विश्व व्यवस्था’ का अंत ?
देवानंद सिंह
यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद से दुनिया ने अंतरराष्ट्रीय कानून, संयुक्त राष्ट्र और एक नियम-आधारित वैश्विक व्यवस्था की धारा में गंभीर बदलाव होते देखे हैं। यह बात उल्लेखनीय है कि 2014 से रूस द्वारा यूक्रेन की संप्रभुता का उल्लंघन करने के बाद, पश्चिमी देशों ने रूस के खिलाफ कठोर प्रतिबंध लगाए, और उसे अंतरराष्ट्रीय समुदाय से अलग कर दिया। इस संकट के बीच, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का रूस के साथ अपने संबंधों को सामान्य करने की पहल ने वैश्विक राजनीति में नई बहस शुरू कर दी है। उनका दृष्टिकोण पश्चिमी गठबंधनों और लोकतांत्रिक संस्थाओं के बारे में एक नया और अलग नजरिया पेश करता है, जिससे यह सवाल उठता है कि क्या ‘उदार विश्व व्यवस्था’ का अंत नजदीक है?
दरअसल, ‘उदार विश्व व्यवस्था’ एक ऐसा ढांचा है, जो द्वितीय विश्व युद्ध के बाद विकसित हुआ था, जिसमें अंतरराष्ट्रीय कानून, वैश्विक संस्थाएं जैसे संयुक्त राष्ट्र, विश्व व्यापार संगठन, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, और विश्व बैंक जैसी संस्थाओं का प्रमुख योगदान था। यह व्यवस्था मुक्त व्यापार, लोकतंत्र, मानवाधिकार और कानून का शासन जैसे मूल्यों को बढ़ावा देती है। इसके अंतर्गत यह विश्वास किया जाता है कि पश्चिमी उदार लोकतंत्र, सरकार का सर्वोत्तम मॉडल है। इस सिद्धांत के तहत, किसी भी देश द्वारा अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन या युद्ध अपराधों का मामला संयुक्त राष्ट्र और अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के सामने उठाया जा सकता है, और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा उचित कार्रवाई की जा सकती है, जिसमें आर्थिक प्रतिबंध या सैन्य हस्तक्षेप भी शामिल हो सकता है।
इस बीच, डोनाल्ड ट्रंप का रूस के प्रति दृष्टिकोण एक बदलाव को दर्शाता है। उन्होंने न केवल रूस के साथ संबंधों को फिर से स्थापित करने की दिशा में कदम बढ़ाया है, बल्कि यूक्रेन के खिलाफ रूस की आक्रामकता पर अपने दृष्टिकोण में भी नर्म रुख अपनाया। ट्रंप ने स्पष्ट रूप से रूस को ‘हमलावर’ कहने या यूक्रेन को युद्ध में पीड़ित घोषित करने से मना कर दिया। उनका यह कदम न केवल यूरोपीय सहयोगियों के लिए, बल्कि वैश्विक राजनीति में भी एक बड़ा संदेश भेजता है।
निश्चित रूप से, ट्रंप की कूटनीति एक तरह से उन पश्चिमी सिद्धांतों को चुनौती देती है, जिनका पालन कई दशकों से किया जा रहा था। उन्होंने यह तक कह दिया कि उनका प्रशासन पिछले प्रशासन की विफलताओं को समाप्त कर रहा है, जो वैश्विक मामलों में अमेरिका के प्रभाव को फिर से स्थापित करने का प्रयास था। यह कहना बिल्कुल गलत नहीं होगा कि ट्रंप के निर्णय ‘उदार विश्व व्यवस्था’ के लिए एक गंभीर संकट पैदा कर रहे हैं। रूस द्वारा यूक्रेन पर हमला करते हुए जो तीन प्रमुख सिद्धांतों का उल्लंघन किया गया है, वे उस व्यवस्था के पतन का संकेत हैं।
इन सिद्धांतों में क्षेत्रीय सीमाओं का उल्लंघन सबसे प्रमुख है, इसके अंतर्गत कोई भी राष्ट्र बल के प्रयोग से अपनी सीमा का विस्तार नहीं कर सकता। दूसरा, नागरिकों के खिलाफ हिंसा , जिसके अंतर्गत
युद्ध में नागरिकों को निशाना बनाना अंतरराष्ट्रीय कानून के खिलाफ है। वहीं, परमाणु हथियारों का इस्तेमाल या उसके प्रयोग की धमकी देना तीसरा सिद्धांत है, इस पर इसीलिए रोक थी, क्योंकि परमाणु हथियारों का इस्तेमाल या उसके प्रयोग की धमकी देना एक बड़े खतरे को पैदा करता है।
लेकिन हैरानी की बात यह है कि रूस ने इन तीनों सिद्धांतों का उल्लंघन किया है, और इसके बाद दुनिया में एक सवाल उठता है कि क्या वैश्विक व्यवस्था में यह बदलाव स्थायी होगा या इसे समय के साथ फिर से सही किया जाएगा। ट्रंप के इस मुद्दे पर रूसी नेतृत्व के साथ ‘दोस्ती’ का दिखावा और उनके यूक्रेन के लिए कमजोर समर्थन, एक नई रणनीतिक दिशा को दर्शाता है, जिसे पश्चिमी दुनिया के लिए चुनौती माना जा सकता है।
रूस हमेशा पश्चिमी देशों पर आरोप लगाता रहा है कि वे अंतरराष्ट्रीय कानून और संयुक्त राष्ट्र की संस्थाओं का उल्लंघन करते हैं। रूस का कहना है कि यूगोस्लाविया, इराक और कोसोवो के मामलों में पश्चिमी देशों ने संयुक्त राष्ट्र की मंजूरी के बिना सैन्य हस्तक्षेप किया है, जो उनके लिए एक स्पष्ट उदाहरण है कि पश्चिमी शक्तियों का दृष्टिकोण अंतरराष्ट्रीय कानून के प्रति एकतरफा है। ट्रंप की नीति ने रूस के इस तर्क को कुछ हद तक सही ठहराया है, जिससे यह सवाल उठता है कि क्या अमेरिकी नेतृत्व अब पश्चिमी शासन और कूटनीतिक नीतियों को और अधिक लचीला बना रहा है।
जब ट्रंप रूस के साथ संबंधों को सुधारने के लिए कदम उठाते हैं, तो इसका एक गहरा असर वैश्विक राजनीति पर पड़ता है। यूरोप में ट्रंप की नीतियों के खिलाफ आलोचना उठने लगी है, और कुछ लोग मानते हैं कि उनकी कूटनीति न केवल अमेरिका के अपने सहयोगियों को परेशान कर सकती है, बल्कि यह अन्य देशों को भी अमेरिका के नेतृत्व से दूर कर सकती है। इस तरह के दृष्टिकोण को लेकर यूरोपीय देशों में भी चिंता बढ़ गई है, जो रूस से संबंधित आर्थिक और कूटनीतिक निर्णयों में अमेरिका के साथ सामंजस्य बनाते आए हैं। हालांकि, ‘उदार विश्व व्यवस्था’ के अंत की घोषणा करना जल्दबाजी होगी। रूस के खिलाफ अमेरिकी प्रतिबंध अभी भी लागू हैं, और ट्रंप प्रशासन ने कहा है कि ये प्रतिबंध तभी हटाए जाएंगे जब रूस यूक्रेन में युद्ध समाप्त करेगा। यद्यपि, ट्रंप प्रशासन की रूस के साथ संबंधों को सामान्य करने की दिशा में उठाए गए कदम एक गंभीर सवाल खड़ा करते हैं, लेकिन यह कहना जल्दबाजी होगी कि पूरी दुनिया में यह व्यवस्था समाप्त हो जाएगी।
आखिरकार, वैश्विक राजनीति में बदलाव अक्सर बहुत धीमी गति से होते हैं, और यह पूरी तरह से इस बात पर निर्भर करेगा कि रूस-यूक्रेन युद्ध कैसे समाप्त होता है और शांति की प्रक्रिया को कैसे लागू किया जाता है। वर्तमान में अमेरिका और रूस के बीच बातचीत की प्रक्रिया केवल भविष्य के वैश्विक आर्किटेक्चर के लिए एक बुरा संकेत हो सकती है, लेकिन यह पूरी दुनिया के लिए खतरे का कारण भी बन सकती है। अंतरराष्ट्रीय राजनीति में ‘उदार विश्व व्यवस्था’ के अंत का सवाल न केवल रूस-यूक्रेन संघर्ष से जुड़ा है, बल्कि यह अमेरिका के अपने वैश्विक दृष्टिकोण में हुए बदलावों से भी जुड़ा है। ट्रंप की कूटनीति और रूस के साथ उनके संबंधों को सामान्य करने की कोशिश ने वैश्विक व्यवस्था में गहरी हलचल पैदा की है। हालांकि अभी भी यह कहना मुश्किल है कि क्या ‘उदार विश्व व्यवस्था’ समाप्त हो रही है या नहीं, लेकिन यह निश्चित है कि वैश्विक राजनीति में एक नया युग शुरू हो चुका है, जिसमें पारंपरिक मानदंडों और सिद्धांतों को चुनौती दी जा रही है।