मैतेई और कुकी समुदायों के बीच विश्वास बहाली को लेकर ठोस कदम उठाए जाने की जरूरत
देवानंद सिंह
मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने अपने पद से इस्तीफा देकर राज्य की राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ लिया है। इस इस्तीफे के बाद राज्य में शांति की बहाली और अमन-चैन की स्थापना को लेकर चर्चाएं तेज हो गई हैं। हालांकि, यह इस्तीफा अपने आप में एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम है, लेकिन यह सवाल भी उठता है कि क्या यह कदम मणिपुर के भीतर गहरे विश्वास और सांप्रदायिक तनाव को खत्म कर पाएगा? क्या बीरेन सिंह का इस्तीफा राज्य में शांति का वातावरण बनाने में मदद कर सकता है या यह केवल एक प्रतीकात्मक कदम साबित होगा?
मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह का इस्तीफा कुछ समय पहले लिया जा सकता था, जब राज्य में पहली बार संघर्ष और तनाव बढ़ने की खबरें आई थीं। यदि, उन्होंने पहले इस तरह का कदम उठाया होता, तो हो सकता है कि उन्हें जिम्मेदारी लेने का श्रेय मिलता, लेकिन अब जबकि हालात पूरी तरह से बिगड़ चुके हैं, यह कदम कोई ज्यादा प्रभाव नहीं डाल पा रहा है। प्रदेश में जारी हिंसा और समाज के दोनों प्रमुख समुदायों – मैतेई और कुकी के बीच बढ़ते असंतोष के बीच यह इस्तीफा शायद खुद को बचाने की एक रणनीति से ज्यादा कुछ नहीं लगता।
मणिपुर में राजनीतिक संकट और सांप्रदायिक संघर्षों ने राज्य को इस हद तक घेर लिया है कि अब यह सवाल महत्वपूर्ण हो गया है कि क्या इस्तीफा देने से स्थिति में बदलाव आएगा। राज्य के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद क्या असली सुधार होगा, यह देखने वाली बात होगी। दरअसल, इस इस्तीफे के बाद अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या मणिपुर में शांति स्थापित की जा सकती है, जहां विभिन्न समुदायों के बीच अविश्वास की गहरी खाई बन चुकी है।
मणिपुर के भीतर सांप्रदायिक तनाव मुख्य रूप से मैतेई और कुकी समुदायों के बीच बढ़ी हुई दूरियों से उत्पन्न हुआ है। कुकी समुदाय की ओर से अलग प्रदेश की मांग उठाई जा रही है, जबकि मैतेई समुदाय राज्य के विभाजन के खिलाफ खड़ा है। इस प्रकार, राज्य की राजनीतिक स्थिति जटिल हो गई है और कोई भी समाधान इस समय बहुत मुश्किल नजर आता है। दोनों समुदायों के बीच अविश्वास और संदेह की खाई इतनी गहरी हो चुकी है कि उसे भरने के लिए लंबे समय तक सुलह और समझौते की प्रक्रिया चाहिए।
इस स्थिति में तत्काल शांति स्थापित करना बेहद चुनौतीपूर्ण है। हालांकि, बीरेन सिंह का इस्तीफा एक सकारात्मक संकेत कहा जा सकता है कि सरकार अब इस दिशा में कदम उठाने के लिए तैयार है, लेकिन यह भी सुनिश्चित करना होगा कि दोनों समुदायों के बीच संवाद और विश्वास स्थापित किया जाए। इसके लिए दोनों समुदायों के नेताओं को अपने-अपने मतभेदों को दरकिनार करते हुए एक ऐसी नीति पर सहमति बनानी होगी, जो दोनों पक्षों की चिंताओं और अपेक्षाओं को समझे।
मणिपुर के वर्तमान संकट का एक और महत्वपूर्ण पहलू यह है कि राज्य के विभिन्न गिरोहों ने सुरक्षा बलों के हथियार लूट लिए हैं, इससे स्थिति और भी बिगड़ गई है, क्योंकि लूटे गए हथियारों का इस्तेमाल हिंसा और संघर्षों को बढ़ावा देने के लिए होने की संभावना बढ़ जाएगी। जब तक इन हथियारों को वापस नहीं लिया जाता, तब तक राज्य में शांति की उम्मीद रखना मुश्किल है। यह सुनिश्चित करना बेहद जरूरी है कि सुरक्षा बलों को पूरी तरह से सशक्त और निष्पक्ष तरीके से कार्य करने के लिए तैयार किया जाए, ताकि दोनों पक्षों के बीच विश्वास की स्थिति बनी रहे।
इसका मतलब यह है कि पुलिस और सुरक्षा बलों की विश्वसनीयता पर काम करना होगा। दोनों ही समुदायों की ओर से आरोप लगाए गए हैं कि सुरक्षा बलों ने पक्षपाती रवैया अपनाया है, जिससे दोनों पक्षों के बीच गुस्सा और असंतोष बढ़ा है। इसलिए, सुरक्षा बलों की कार्यप्रणाली को अधिक पारदर्शी और निष्पक्ष बनाना महत्वपूर्ण होगा।
बीरेन सिंह के इस्तीफे के बाद अब यह सवाल उठता है कि राज्य की सत्ता किसके हाथों में जाएगी। यह निर्णय मणिपुर के भविष्य के लिए महत्वपूर्ण साबित हो सकता है। राज्य के चुनावी समीकरणों को देखते हुए, सत्ता में बदलाव का असर चुनावों पर भी पड़ेगा। मणिपुर में विधानसभा चुनाव अगले एक साल के भीतर होने हैं और ऐसे में किसी भी सरकार का चुनावी दृष्टिकोण राज्य में शांति और स्थिरता को बनाए रखने में अहम भूमिका निभा सकता है, हालांकि विधानसभा के बजट सत्र को स्थगित किए जाने के कारण अविश्वास प्रस्ताव की संभावना भी फिलहाल टल गई है, लेकिन इसके बावजूद राजनीति के इस दौर में यह देखना होगा कि राज्य में किस प्रकार की नेतृत्व क्षमता सामने आती है। क्या आने वाले मुख्यमंत्री के पास वह कड़ी नेतृत्व क्षमता होगी, जो इस तनावपूर्ण माहौल में शांति स्थापित कर सके?
बीरेन सिंह के इस्तीफे के बाद राज्य में क्या स्थिति बनेगी, यह भी एक बड़ा सवाल है। राज्यपाल द्वारा विधानसभा सत्र को रद्द किए जाने के बाद, केंद्र सरकार द्वारा राष्ट्रपति शासन लागू करने की संभावना पर भी विचार किया जा रहा है। अगर, राष्ट्रपति शासन लागू होता है, तो राज्य में शांति स्थापित करने के लिए एक केंद्रीय नियंत्रण की आवश्यकता होगी, लेकिन इस फैसले के संभावित प्रभाव को लेकर भी विवाद हो सकते हैं, क्योंकि इससे राज्य की स्वायत्तता पर सवाल उठ सकते हैं।
कुल मिलाकर, मणिपुर के वर्तमान संकट से बाहर निकलने के लिए सभी पक्षों को अपने-अपने मतभेदों को एकतरफ रखते हुए संवाद और सहमति के रास्ते पर चलना होगा। मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह का इस्तीफा एक सकारात्मक कदम हो सकता है, लेकिन इसके बाद के घटनाक्रम और राजनीतिक फैसलों का राज्य की शांति और समृद्धि पर गहरा असर पड़ेगा। इन परिस्थितियों में, यह जरूरी है कि दोनों समुदायों के बीच विश्वास बहाली की दिशा में ठोस कदम उठाए जाएं और राज्य की सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत किया जाए। मणिपुर का भविष्य इस बात पर निर्भर करेगा कि नेतृत्व कितना जिम्मेदार और संवेदनशील है और क्या सभी पक्ष इस विवाद के समाधान के लिए एक साथ बैठने को तैयार होते हैं।