बीजेपी नेताओं के ओछी बयानों से राजनीतिक मूल्यों में आई भरी गिरावट
डॉ. अजय कुमार
अपने देश में विवादित बयान देने वालों की कोई कमी नहीं है. एक विवाद थमता नहीं कि दूसरा पैदा हो जाता है. ऐसा लगता है जैसे विवादित और अमर्यादित बयानों की ये श्रंखला टूटेगी ही नहीं.
भारतीय जनता पार्टी के मंत्रियों व नेताओं ने तो जैसे अमर्यादित और विवादित बयान देने का पेटेंट अपने नाम करवा लिया है. जिस प्रकार पिछले दिनों भाजपा के रेल राज्य मंत्री रवनीत सिंह बिट्टू ने राहुल गांधी के खिलाफ बयान दिया वो निश्चित रुप से शर्मनाक है. इतना ही नहीं शिव सेना (शिंदे गुट) के संजय गायकवाड़ ने राहुल गांधी के खिलाफ जो बयान दिया है वह भारतीय राजनीति की गिरावट की पराकाष्ठा है. इनके खिलाफ सख्त कार्रवाई करने की आवश्यकता है ताकि भविष्य में राजनेताओं द्वारा इस प्रकार के जहरीले बयानबाजी ना किए जाएं. ऐसा नहीं है कि यह पहली बार हुआ है. 2014 के बाद से भाजपा नेताओं के बोल बिगड़ गए है जो अब तक सुधरने का नाम नहीं ले रहें है. इसके पीछे कहीं ना कहीं पार्टी नेतृत्व का मौन समर्थन है.
इससे पहले भी बीजेपी नेताओं ने कांग्रेस के नेता राहुल गांधी एवं सोनिया गांधी के खिलाफ अमर्यादित बयान दिए है. जिसमें सबसे पहला नाम आता है भाजपा के कद्दावर और बड़बोले नेता समझे जाने वाले गिरिराज सिंह का. इनके अलावा कुछ और भी नेता हैं जिनके बयानों को विपक्ष ने भी बड़ा मुद्दा बनाया और संसद में भी जोरदार हंगामा किया था. यहां तक कि इन बयानों को लेकर प्रधानमंत्री की चुप्पी पर भी सवाल खड़े किये गये थे. बावजूद इसके मंत्रियों व नेताओं की बदजुबानी बदस्तूर जारी है.
पहली बार केंद्र में मंत्री बने गिरिराज सिंह ने कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी के विषय में नस्लीय टिप्पणी कर विवाद खड़ा कर दिया था. गिरिराज ने कहा था कि यदि सोनिया गांधी ‘गोरी चमड़ी’ वाली नहीं होतीं तो क्या कांग्रेस उनके नेतृत्व को स्वीकार करती. हालांकि सोनिया गांधी पर दिये बयान के बाद उन्होंने संसद में माफी भी मांगी थी.
गिरिराज सिंह ने इससे पहले भी लोकसभा चुनाव के दौरान विवादित बयान दिये थे. उन्होंने कहा था कि कुछ लोग जिनका मक्का-मदीना पाकिस्तान है, वे नरेंद्र मोदी को सत्ता में आने से रोकने की कोशिश कर रहे हैं. सभी मोदी विरोधियों को पाकिस्तान चले जाना चाहिए. हालांकि इस विवादित बयान की वजह से उनपर केस भी हुए.
दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा के प्रचार अभियान की शुरुआत करते हुए पूर्व केंद्रीय राज्यमंत्री साध्वी निरंजन ज्योति ने आपत्तिजनक टिप्पणी की थी. रैली को संबोधित करते हुए भाजपा नेत्री साध्वी ज्योति ने कहा था कि आपको तय करना है कि दिल्ली में सरकार रामजादों की बनेगी या हरामजादों की। यह आपका फैसला है.
वहीं अपने विवादित बयानों के लिए खबरों में बने रहने वाले भाजपा नेता साक्षी महाराज ने राहुल गांधी को पागल तक कह दिया था. साक्षी ने कहा था कि राहुल गांधी राजनीति की एबीसीडी भी नहीं जानते. वह गेहूं और जौ की बाली में अंतर नहीं जानते और किसानों की बात करते हैं. भाजपा नेता साक्षी महाराज ने में नेपाल में आए भीषण भूकंप के लिए भी राहुल गांधी को जिम्मेदार ठहराया था.
वहीं मध्य प्रदेश के भाजपा नेता कैलाश विजयवर्गीय तो एक कदम आगे निकले. उन्होंने रामायण का उदाहरण देते हुए कहा कि ‘एक ही शब्द है- मर्यादा. मर्यादा का उल्लंघन होता है, तो सीता-हरण हो जाता है. लक्ष्मण रेखा हर व्यक्ति की खींची गई है. उस लक्ष्मण रेखा को कोई भी पार करेगा, तो रावण सामने बैठा है, वह सीता हरण करके ले जाएगा.
भाजपा नेताओं के इन अमर्यादित बयानों से राजनीतिक मूल्यों की कल्पना नहीं की जा सकती. नीतिगत नियंत्रण या अनुशासन लाने के लिए आवश्यक है सर्वोपरि राजनीतिक स्तर पर आदर्श स्थिति हो, तो नियंत्रण सभी स्तर पर स्वयं रहेगा और इसी से देश एक आदर्श लोकतंत्र को स्थापित करने में सक्षम हो सकेगा. अक्सर चुनावों के दौर में राजनीति में बिगड़े बोल एवं नफरत की राजनीति कोई नई बात नहीं है. चर्चा में बने रहने के लिए ही सही, राजनेताओं के विवादित बयान गाहे-बगाहे सामने आ ही जाते हैं, लेकिन ऐसे बयान एक ऐसा परिवेश निर्मित करते हैं जिससे राजनेताओं एवं राजनीति के लिये घृणा पनपती है. राजनीति में वाणी का संयम एवं शालीनता बहुत जरूरी है, क्योंकि शब्द आवाज नहीं करते, पर इनके घाव बहुत गहरे होते हैं और इनका असर भी दूर तक पहुंचता है और देर तक रहता है. इस बात को राजनेता भी अच्छी तरह जानते हैं इसके बावजूद जुबान से जहरीले बोल सामने आते ही रहते हैं. इससे राजनेताओं को बचने की जरुरत है. ताकि भारतीय लोकतंत्र की मर्यादा कायम रहे.