निष्पक्ष पत्रकारिता का एक और पायदान…
देवानंद सिंह
‘राष्ट्र संवाद’ ने हाल ही में अपनी स्थापना के 25 वर्ष पूर्ण किए हैं। यानी राष्ट्र संवाद का यह गौरवपूर्ण रजत जयंती वर्ष है। यह किसी भी संस्थान के लिए एक महत्वपूर्ण कालखंड होता है, जो उसकी निरंतरता और प्रतिबद्धता को दर्शाता है, लेकिन सदैव हमारी यह निरंतरता और प्रतिबद्धता आत्मचिंतन और मीडिया की दशा-दिशा की पड़ताल करने को लेकर रही है, इसीलिए हमारे लिए ‘राष्ट्र संवाद’ का 25 साल का सफर पड़ाव- दर-पड़ाव आगे बढ़ते रहने की जद्दोजहद भरा एक कठिन सफर रहा है, लेकिन विपरीत दिशा में चल रही हवाओं के तेज थपेड़ों के बीच हमने निष्पक्ष पत्रकारिता की मशाल जलाए रखने का बीड़ा उठाए रखा। इस कड़ी में हम आपके बीच ‘राष्ट्र संवाद’ दैनिक समाचार पत्र भी लेकर आ गए हैं, जो हमारी निष्पक्ष पत्रकारिता को धार तो देगा ही, बल्कि पाठकों की खबरों से जुड़ी हर जिज्ञासा को पूरी भी करेगा और यथार्थ के आलोक में सही रास्ता दिखाने का काम भी करेगा।
‘राष्ट्र संवाद’ का शुरू से ही प्रयास रहा है कि आजादी के आंदोलन में पत्रकारिता का जो मिशन रहा है, उसे आगे बढ़ाया जाए। कॉरपोरेट कल्चर एवं बाजार के अति प्रभावशाली हो जाने के कारण यह हमारे लिए बड़ी चुनौती रही है, लेकिन निष्पक्ष पत्रकारिता हमारा दृढ़ संकल्प रहा है,जिसे हम ईमानदारी के साथ आगे बढ़ाते रहेंगे। बाजार की इस होड़ में हम अपने मिशन से भटकेंगे नहीं। इसी कड़ी को बढ़ाते हुए आज राष्ट्र संवाद ने दैनिक अखबार का दीप प्रज्वलित कर शुभारम्भ किया जिसमे शहर प्रबुद्ध बुद्धिजीवियों के साथ शिक्षाविद राजनैतिक एवं समाजिक क्षेत्र के गणमान्य लोग मौजूद थे
हम सब जानते हैं कि आज के दौर में कलम बाजारू हो गई है। सही को सही लिखने का साहस अब बड़े-बड़े कलमवीरों में भी नहीं बचा है। बड़े-बड़े संपादक सत्ता प्रतिष्ठानों की कृपा प्राप्त करने के लिए कलम से तरह-तरह की तिकड़में भिड़ाते रहते हैं। उनकी लेखनी हमेशा किसी-न-किसी की स्तुति गान ही करती रहती है। बदले में किसी को मोटे वेतन व घोड़ा-गाड़ी के साथ कहीं का सलाहकार बना दिया जाता है तो कोई-न-कोई राज्यसभा की सदस्यता हासिल कर लेता है। ऐसे सेलेब्रिटी पत्रकारों के प्रति विश्वास डगमगाने लगता है, लेकिन फिर भी इन्हीं लोगों के घटिया आचरण के कारण यह विचार और दृढ़ होता है कि हमें पत्रकारिता को उसके आदर्शों से भटकने नहीं देना है।
पत्रकारिता जगत में 25 साल का सफर इसी दृढ संकल्प का परिणाम रहा है। सत्ता के मठाधीशों के दरबार में चरणवंदना करने वालों में दशकों से स्थापित तथा कथित राष्ट्रीय मीडिया से लेकर शहर, जिला मुख्यालयों से निकलने वाले स्थानीय अखबार, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया तक सभी शामिल हैं। अधिकांश बड़े-बड़े पत्रकारों के साथ-साथ मीडिया संस्थान किसी-न-किसी पार्टी के प्रवक्ता के तौर पर काम करने में जुटे हुए हैं। किसी को सामाजिक समस्याओं व मुद्दों को लेकर किसी भी प्रकार का सरोकार नहीं है। कभी आजादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली पत्रकारिता जब नतमस्तक के मोड़ पर आ गई है तो इन परिस्थितियों में ‘राष्ट्र संवाद’ ने उस पुरानी अलख को जगाए रखने की पूरी कोशिश की है। बड़े-बड़े अखबारों का हाल न केवल खबरों से समझौता करने को लेकर बेहद लचीला हो गया है, वहीं पत्रकारों के शोषण के मामले में भी स्थितियां आज जगजाहिर है। मजठिया आयोग द्वारा तय वेतनमान के मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी क्या स्थितियां बनी हुई हैं, इसे सभी जानते हैं। कोई भी ऐसा बड़ा संस्थान नहीं है, जहां मजीठिया आयोग द्वारा तय वेतनमान लागू किया गया है।
बाकायदा, तरह-तरह के हथकंडे अपनाकर या तो कर्मचारियों को निकाला गया है या फिर उन्हें किसी बाहरी एजेंसी के माध्यम से नियुक्त दिखाया गया है। हैरानी की बात यह है कि पत्रकारों को अनुशासित वेतन न देने के तरह-तरह के हथकंडे अपनाने वाले वे अखबार ही अपने पन्नों पर खुद को सर्वाधिक पढ़ा जाने वाला नंबर-वन अखबार भी घोषित करते रहते हैं।
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का हाल तो और भी बुरा है। कुछ समाचार चैनलों पर तो दिन भर कोई-न-कोई ज्योतिषाचार्य बैठा हुआ शनि से मुक्ति के उपाय बताता नजर आता है। उससे मुक्ति मिलती है तो कॉमेडी शो के फूहड़ फिल्मी मजाक के तरह-तरह के भावों के साथ पुनः प्रसारण चलता रहता है और जब समाचारों की बारी आती है तो फटाफट 200 खबरें आने लगती है, जिसमें छोटी-मोटी चोरी चमारी की मामूली खबरों को भी बड़े ही सनसनीखेज ढंग से राष्ट्रीय समाचार के रूप में पेश किया जाता है। फिर चैनल अपने एजेंडे और दलीय निष्ठा के अनुसार भाषणनुमा खबर प्रस्तुत करते हैं।
कुल मिलाकर, लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जाने वाला मीडिया अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अपने अधिकार को तिलांजलि दे चुका है और लोकतंत्र के अन्य स्तंभों पर अकुंश लगाने की अपनी भूमिका को स्वतः ही सीमित करता जा रहा है, लेकिन ‘राष्ट्र संवाद’ अपने सीमित साधन संसाधनों के बावजूद स्वतंत्र, निष्पक्ष और विवेकपूर्ण भूमिका निभाता आ रहा है। इस प्रयास में हमें अपने सुधि पाठकों, विज्ञापनदाताओं व शुभचिंतकों का भरपूर सहयोग मिला है।
‘राष्ट्र संवाद’ ने जिस तरह अपने सफर को समय के साथ ढाला है, वह सब सुधी पाठकों, विज्ञापनदाताओं और शुभचिंतकों का प्यार है और हमारी टीम के द्वारा निष्पक्ष पत्रकारिता की डोर को थामे रखने का प्रयास भी है, जिसकी वजह से ही सुधी पाठकों, विज्ञापनदाताओं और शुभचिंतकों का अटूट प्यार ‘राष्ट्र संवाद’ के प्रति आज तक बना हुआ है। हम भरोसा दिलाते है कि ‘राष्ट्र संवाद’ मासिक पत्रिका, साप्ताहिक और डिजिटल प्लेटफार्म ने लोगों के बीच निष्पक्ष पत्रकारिता के बल पर जो जगह बनाई है, वही जगह दैनिक ‘राष्ट्र संवाद’ भी बनाएगा और आपके विश्वास पर खरा उतरेगा। हमें भी सुधी पाठकों, विज्ञापनदाताओं और शुभचिंतकों पर पूरा भरोसा है कि उनका ‘राष्ट्र संवाद’ मासिक पत्रिका, साप्ताहिक और डिजिटल प्लेटफार्म की तरह ही दैनिक ‘राष्ट्र संवाद’ के प्रति भी प्यार बना रहें |
दीप प्रज्वलित कार्यक्रम में उपस्थित मनीष प्रकाश सिन्हा RM बैंक ऑफ़ बड़ौदा , पुष्पेंद्र कुमार वरीय शाखा प्रबंधक गोलमुरी ,अनिल ठाकुर महासचिव बह्मर्षि विकास मंच ,दिवाकर सिंह चैयरमेन SDSM फॉर एक्सेलेंस ,प्रभाकर सिंह वाईस चांसलर सोना देवी यूनिवर्सिटी ,कमल किशोर पूर्व DSP ,डा कल्याणी कबीर प्रिंसिपल रम्भा कॉलेज ,डॉ अनीता शर्मा लक्ष्मीनगर स्कूल प्रधानाध्यापक ,राजेश शुक्ला वरीय उपाध्यक्ष झारखण्ड स्टेट बार कौंसिल ,शिव शंकर सिंह समाजसेवी , राष्ट्र संवाद के संपादक देवानंद सिंह एवं पूरी टीम को को दी बधाई कार्यक्रम को सफल बनाने में धीरज कुमार GM राष्ट्र संवाद ,ज्योति मिश्रा कार्यालय प्रभारी ,अमन कुमार समन्वय संपादक ,मंजीत कुमार मुख्य संवाददाता ,संजय सिंह विशेष संवाददाता , रीता गुप्ता ,संतोष शर्मा एवं अन्य लोग भूमिका निभाई