सूरत बदल जाती है….सीरत बदल जाती है ।।
बटुए में हों पैसे…..तो जीनत बदल जाती है ।।
अगर कोई हाल-चाल पूछनेवाला हो जिंदा ।
बीमार आदमी की….तबीयत बदल जाती है ।।
कहते हैं….लक्ष्मी के रुप में बहुत खिंचाव है ।
तिजोरी खुली हो….तो नीयत बदल जाती है ।।
अब अगले जन्म का…पाप-पुण्य है ढेंगे पर ।
पलक झपकते ही…वसीयत बदल जाती है ।।
बहुत आसान होता है….औरों को ज्ञान देना ।
बात जब अपनी हो..नसीहत बदल जाती है ।।
चुनावी रजाई से…महंगाई डायन जब झांके ।
रातों-रात सामान की कीमत बदल जाती है ।।
वैसे आदमी एक सामाजिक प्राणी है “वंदन” ।
फायदा देखकर…आदमीयत बदल जाती है ।।
© मनीष सिंह “वंदन”