रांची : झारखंड के प्रथम मुख्यमंत्री और झारखंड विकास मोर्चा प्रजातांत्रिक (जेवीएम-पी) के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने अपनी पार्टी का भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में विलय किया और इसके ठीक बाद उन्हें भाजपा विधायक दल का नेता चुन लिया गया. वह विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बन गये हैं. इसके कई राजनीतिक मायने निकाले जा रहे हैं, तो भाजपा और बाबूलाल मरांडी दोनों की आलोचना भी हो रही है.
यूं तो बाबूलाल मरांडी पुराने संघी और भाजपाई हैं, लेकिन 14 साल तक पार्टी से दूर रहने के बाद घरवापसी के साथ ही इतनी बड़ी जिम्मेवारी पर उनके विरोधी कई सवाल खड़े करते हैं. पहला सवाल है कि क्या झारखंड में भाजपा के पास कोई ऐसा नेता नहीं रहा, जो विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी निभा सके. दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी की ऐसी क्या मजबूरी थी कि मरांडी को पार्टी में शामिल कराना पड़ा और उन्हें इतनी बड़ी जिम्मेदारी देनी पड़ी.
दरअसल, झारखंड भाजपा के शीर्ष नेताओं के बीच अंतर्कलह चरम पर था. इसका नतीजा विधानसभा चुनाव में और इससे पहले लोकसभा चुनाव में देखने को मिला. लोकसभा चुनाव में तो पार्टी ने शानदार प्रदर्शन किया, लेकिन राज्य विधानसभा के चुनाव में इस गुटबंदी ने भाजपा का बेड़ा गर्क कर दिया. पार्टी का मत प्रतिशत भले बढ़ा, उसकी सीटें सीमित रह गयीं और सरकार बनाने का सपना चकनाचूर हो गया.
विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा ने गैर-आदिवासी मुख्यमंत्री का चेहरा दिया. आदिवासी बहुल झारखंड राज्य में गैर-आदिवासी मुख्यमंत्री के मुद्दे को विपक्षी दल झारखंड मुक्ति मोर्चा और उसके सहयोगियों ने चुनाव प्रचार में जोर-शोर से उछाला. भाजपा को इसका भारी नुकसान उठाना पड़ा. वहीं, पार्टी के पास राज्य में कोई बड़ा आदिवासी चेहरा नहीं था, जिसे नेतृत्व सौंपा जा सके. इसलिए भाजपा ने मरांडी को पार्टी में लाने का निश्चय किया और उन्हें बड़ी जिम्मेदारी सौंपी.
उधर, बाबूलाल मरांडी की पार्टी जेवीएम-पी ने अब तक तीन विधानसभा और दो लोकसभा चुनाव लड़े. कभी अकेले, कभी गठबंधन के साथ मिलकर. लेकिन, उन्हें अपेक्षित सफलता नहीं मिली. विधानसभा चुनाव में इस बार उनका मत प्रतिशत बहुत कम रहा. लोकसभा चुनाव में कभी उनकी पार्टी जीत नहीं दर्ज कर सकी. कांग्रेस और झामुमो के साथ गठबंधन की, तो उसमें उनकी राय को दरकिनार कर दिया गया.
यही वजह रही कि वर्ष 2019 में हुए झारखंड विधानसभा चुनाव में उन्होंने ‘एकला चलो’ का फैसला किया. सभी 81 सीटों पर उन्होंने अपने उम्मीदवार खड़े किये, लेकिन मात्र 3 लोग ही जीत पाये. बाबूलाल मरांडी, प्रदीप यादव और बंधु तिर्की ही विधानसभा पहुंच पाये. भाजपा काफी दिनों से चाहती थी कि मरांडी अपने घर लौट आयें, लेकिन बाबूलाल अपनी अलग पहचान बनाये रखना चाहते थे.
इसलिए झारखंड विधानसभा में झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो), कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के गठबंधन ने 47 सीटें जीतीं, तो बाबूलाल मरांडी ने इस गठबंधन को बिना शर्त समर्थन देने का एलान कर दिया. झामुमो के नेतृत्व में सरकार बनते ही राज्य में कई नक्सली वारदात हुई. हेमंत सोरेन सरकार ने पत्थलगड़ी करने वालों के खिलाफ दर्ज मुकदमे वापस लेने का एलान कर किया. इस दौरान आपराधिक घटनाएं भी हुईं. पश्चिमी सिंहभूम के बुरुगुलीकेरा में पत्थलगड़ी के नाम पर 7 लोगों की सिर काटकर हत्या कर दी गयी.
इस नृशंस नरसंहार पर सरकार और प्रशासन का ढीला-ढाला रवैया देख बाबूलाल व्यथित हुए और हेमंत सोरेन सरकार से समर्थन वापसी का एलान कर दिया. झारखंड के मुख्यमंत्री के रूप में बाबूलाल मरांडी ने नक्सलवाद के खिलाफ सख्त रुख अपनाया था. इस नृशंस हत्या ने उन्हें हिलाकर रख दिया और जेवीएम-पी ने झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार से समर्थन वापस ले लिया.
हेमंत सोरेन सरकार से समर्थन वापसी को इस बात का संकेत माना जा सकता है कि वह नक्सलवाद के खिलाफ सख्त कार्रवाई चाहते हैं. मुख्यमंत्री रहते बाबूलाल मरांडी ने राज्य की शिक्षा व्यवस्था में सुधार के साथ-साथ गांवों में सड़कों का जाल बिछाने पर जोर दिया था. राजधानी रांची से जनसंख्या का बोझ कम करने के लिए उन्होंने ग्रेटर रांची का सपना देखा था.
विधानसभा चुनाव से पहले झामुमो-कांग्रेस-राजद गठबंधन ने पारा शिक्षकों को स्थायी करने, बेरोजगार युवाओं को बेरोजगारी भत्ता देने का वादा किया था. झारखंड पब्लिक सर्विस कमीशन (जेपीएससी) की परीक्षाओं में हुई गड़बड़ियों को दूर करने का वादा किया था. अब पारा शिक्षक हेमंत को अपना वादा याद दिला रहे हैं, तो जेपीएससी के अभ्यर्थी परीक्षा को रद्द करने की मांग कर रहे हैं. विधानसभा और विधानसभा के बाहर बाबूलाल मरांडी अब हेमंत सोरेन को घेरेंगे.
पद की लालच में भाजपा में शामिल हुए बाबूलाल?
बाबूलाल मरांडी ने अपनी पार्टी जेवीएम-पी के भाजपा में विलय की घोषणा की, तो बहुत से लोगों ने उन्हें पदलोलुप बताया. कहा कि पद की चाह में वह भाजपा में शामिल हो रहे हैं. बाबूलाल ने इसका जवाब प्रभात तारा मैदान में उस मंच से दिया, जहां उन्होंने अपनी पार्टी का भाजपा में विलय किया. बाबूलाल ने साफ कहा कि पार्टी उन्हें जो भी जिम्मेदारी देगी, उसे निभाने के लिए वह तैयार हैं. पार्टी यदि उन्हें झाड़ू लगाने का काम देगी, तो वह उसके लिए भी तैयार हैं.
यहां बताना प्रासंगिक होगा कि बाबूलाल मरांडी को पार्टी में शामिल कराने और उन्हें बड़ी जिम्मेदारी देने से पहले केंद्रीय नेतृत्व में राज्य इकाई की राय ली थी. राज्य के सांसदों के साथ गृह मंत्री अमित शाह और राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने बैठक कर संगठन में फेरबदल पर उनसे सुझाव मांगे थे. नये प्रदेश अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष को लेकर सांसदों के साथ चर्चा हुई़ श्री मरांडी के पार्टी में शामिल होने के बाद की राजनीतिक परिस्थितियों पर भी भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व में गहन विचार-विमर्श किया था.