बात 2009-10 की है. उस वक्त जेबीवीएनएल का गठन नहीं हुआ था. लेकिन वही अधिकारी उस वक्त भी ऊर्जा विभाग में मौजूद थे, जो आज बोर्ड के अहम पदों पर हैं.
ग्रामीण इलाकों में बिजली पहुंचाने के लिए करीब आठ कंपनियों को काम सौंपा गया था. कंपनियों ने तय समय पर काम खत्म नहीं किया. नियम के मुताबिक, काम तय समय पर खत्म नहीं करने की वजह से जुर्माना लगाया जाता है. लेकिन कंपनियों ने वित्त विभाग को संभालनेवाले अधिकारियों पर इतनी मेहरबानी बना रखी थी कि उनपर जुर्माना लगाने की बजाय उन्हें इनाम दे दिया गया. वह भी करीब 15 करोड़ रुपये का.
कंपनियों को जब भुगतान विभाग की तरफ से करना था, तो बिना टीडीएस काटे ही विभाग ने कंपनियों को टीडीएस का सर्टिफिकेट दे दिया. सभी कंपनियों का टीडीएस करीब 15 करोड़ रुपये के आस-पास था. इन कंपनियों में NECON और LUMINA INDUSTRY जैसी कंपनियां शामिल थीं.
बताया जा रहा है कि LUMINA INDUSTRY के 2.52 करोड़ रुपये जो टीडीएस के थे, उसे बिना वसूले ही विभाग ने सारा भुगतान कर दिया. साथ ही सर्टिफिकेट भी दे दिया. इतना ही नहीं, बोर्ड ने कंपनियों की बैंक गारंटी लौटाने में भी काफी तेजी दिखायी. सभी निजी कंपनियों की बैंक गारंटी वापस कर दी गयी.
विधानसभा में कबूली विभाग ने सारी बात
19 जुलाई 2018 को ग्रिष्मकालीन विधानसभा सत्र के दौरान पूर्व निरसा विधायक अरूप चटर्जी ने सदन में मामले को लेकर सवाल किया. सवाल टीडीएस घोटाले से जुड़ा हुआ था. विभाग ने जो सवाल के जवाब दिए उससे साफ हो गया कि विभाग में टीडीएस घोटाला हुआ था.
पहला सवाल: क्या यह सही है कि जेबीवीएनएल के गठन से पहले 2009-10 में राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों में विद्युतीकरण के लिए 8 निजी कंपनियों को काम सौंपा गया था. उस काम के एवज में जब आखिरी भुगतान विभाग की तरफ से कंपनियों को कराया गया तो बिना टीडीएस कोड के ही विभाग ने इन कंपनियों को 15 करोड़ का टीडीएस सर्टिफिकेट दे दिया.
विभाग का जवाब: साल 2006-07 में राज्य की ग्रामीण विद्युतीकरण का काम 4 निजी कंपनियों को सात पैकेज का काम सौंपा गया था. कंपनियों को अभी तक आखिरी भुगतान नहीं किया गया है.
दूसरा सवालः क्या यह सही है कि आयकर विभाग ने बोर्ड को 15 करोड़ की टीडीएस राशि को संबंधित कंपनियों से वसूलने और आयकर विभाग में जमा करने का नोटिस दिया था. लेकिन बोर्ड ने अपने फंड से ही आयकर विभाग को टीडीएस की राशि जमा करवा दी.
विभाग का जवाबः 2008-09 में आयकर विभाग ने सर्वे किया था. जिसमें विद्युतीकरण योजना में साल 2006-07 से लेकर सर्वे की तिथि तक किए गए सामग्रियों की आपूर्ति पर भुगतान की राशि का 2% की दर से टीडीएस जमा करने को कहा था. आयकर विभाग ने टीडीएस की राशि नहीं जमा करने की स्थिति में दंडनात्मक ब्याज, जुर्माना और अभियोजन तथा बोर्ड के बैंक खातों को जब्त करने की चेतावनी भी दी थी. 2006-07 तक कंपनियों को अधिकतम भुगतान कर दिया गया था, साथ ही उस वक्त कंपनियों का बिल भी उपलब्ध नहीं था. ऐसे में एसीएईटी, टीडीएस सर्कल, रांची (आयकर विभाग) के आदेश के अनुसार टीडीएस की राशि ग्रामीण विद्युतीकरण योजना मद की राशि से जमा कर दी गई. जिससे भविष्य में निजी कंपनियों से मैनेज करना था. लेकिन अभी तक यह राशि कंपनियों से नहीं वसूली गयी है.
तीसरा सवालः क्या यह बात सही है कि यह मामला जेबीवीएनएल गठन के बाद बोर्ड के सीएमडी आरके श्रीवास्तव के संज्ञान में आया. उन्होंने बोर्ड के नियम के विरुद्ध इस काम से हुए 15 करोड़ की राजस्व नुकसान की जांच के लिए बोर्ड के एमडी और जीएम एचआर को 29.02.2017 को एक पत्र लिखकर इस मामले की जांच विजिलेंस की टीम बनवाकर करवाने के लिए कहा था. लेकिन इन विषयों पर आज यानि 3.07.2018 तक कोई भी कार्यवाही नहीं हो पायी है.
विभाग का जवाबः स्वीकारात्मक है. मतलब विभाग ने माना कि ऐसा हुआ था. और जेबीवीएनएल की तरफ से किसी तरह की कोई कार्रवाई नहीं हुई. सीएमडी की चिट्ठी को दबा दिया गया. ना तो MD ने और ना ही जिएए एचआर ने सीएमडी के निर्देश के बाद किसी तरह की कोई कार्रवाई की.
चौथा सवालः अगर सभी सवाल सही हैं, तो क्या सरकार इस विषय पर एक उच्च स्तरीय समिति से जांच करवाकर दोषियों पर आवश्यक कानूनी कार्यवाई करने का विचार रखती है. हां तो कब तक नहीं तो क्यों.
विभाग का जवाबः इस पूरे प्रकरण की जांच कराते हुए दोषी व्यक्तियों को दोषी व्यक्तियों की पहचान कर आवश्यक कार्यवाई शीघ्र ही की जाएगी.
चुप रहे रघुवर दास नहीं की कोई कार्रवाई
विधानसभा सदन को लोकतंत्र का मंदिर माना जाता है. विभाग ने माना कि 15 करोड़ का टीडीएस घोटाला हुआ है. पूख्ते तौर पर यह साबित हो गया कि टीडीएस घोटाला हुआ है. कार्रवाई होगी ऐसा बात भी विभाग की तरफ से कही गयी. लेकिन सवाल है कि साबित होने के बावजूद आखिर रघुवर दास ने आरोपियों पर कार्रवाई क्यों नहीं की.
क्यों बतौर मंत्री और मुख्यमंत्री आरोपियों को संरक्षण देते रहे. यह बात सही है कि उनके कार्यकाल में घोटाला नहीं हुआ था. लेकिन उन्हीं के कार्यकाल में इस घोटाले का पर्दाफाश हुआ. लेकिन कार्रवाई के नाम पर रघुवर दास चुप्पी साधे रहे. ऐसे में क्या उनपर कोई जिम्मेदारी तय नहीं होनी चाहिए.