झारखंड: चुनाव पर नक्सली हिंसा का साया
बिशन पपोला
झारखंड विधानसभा चुनाव को शांतिपूर्वक संपन्न कराने के लिए प्रशासन ने भले ही कितना प्रयास न किया हो, लेकिन नक्सली हिंसा का साया फिर भी चुनाव पर मंडराया हुआ है। झारखंड राज्य में 19 जिले नक्सल से प्रभावित हैं, ऐसे में प्रशासन के लिए इन जिलों में शांतिपूर्ण चुनाव संपन्न कराना किसी चुनौती से कम नहीं होगा। पहले चरण के चुनाव से ठीक पहले, जिस तरह लातेहार में नक्सलियों ने अपनी धमक दिखाई है, उसने प्रशासन की चिंता को और बढ़ा दिया है। असल में, लातेहार के जिस पुलिस इंस्पेक्टर मोहन पांडेय को नक्सल मामलों का विशेषज्ञ व नक्सल विरोधी अभियान का बड़ा खिलाड़ी बताकर स्थानांतरण रोकने की अनुशंसा की गई थी, उसी पुलिस इंस्पेक्टर के थाना क्षेत्र में नक्सली हमले में एक एएसआई व तीन जवानों की शहादत ने न सिर्फ प्रशासन व सुरक्षा बलों की चिंता बढ़ा दी है, वहीं पुलिस के खुफिया तंत्र की पोल भी खोल दी है। इन परिस्थितियों में प्रशासन व सुरक्षा बलों को अतिरिक्त सक्रियता दिखानी होगी, तभी नक्सली हिंसा से चुनाव को बचाया जा सकता है।
इसमें कोई शक नहीं कि चुनाव को शांतिपूर्ण तरीके से संपन्न कराना किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं होता है। इसके लिए प्रशासन व सुरक्षा बलों को अतिरिक्त मेहनत करनी पड़ती है और खुफिया तंत्र भी अधिक सजग रहने लगता है, लेकिन जिस प्रकार नक्सली पुलिस-प्रशासन की ऐसी सक्रियता के बाद भी अपनी धमक दिखा रहे हों, इसका मतलब उन्हें पुलिस-प्रशासन व सुरक्षा बलों का कोई डर नहीं है। वे बैखौफ होकर चुनाव को प्रभावित करना चाहते हैं। ऐसे में, अगर शासन प्रशासन नक्सलियों के साथ निर्णायक लड़ाई नहीं करेगा तो नक्सलियों से निपटना आसान नहीं होगा।
अगर, राज्य में 19 जिले नक्सल प्रभावित हैं तो निश्चित ही वे चुनाव के मद्देनजर संवेदनशील क्षेत्रों में आते हैं और इन्हीं में बहुत से क्षेत्र अतिसंवेदनशील क्षेत्रों में शामिल हैं। इन क्षेत्रों को इसीलिए इस कटैगिरी में रखा जाता है, क्योंकि यहां कभी-न-कभी बड़े नक्सली हमले हुए हैं। लिहाजा, यहां क्वालिटी फोर्स लगाने की बात हुई थी और गश्त की जिम्मेदारी गृह रक्षकों के भरोसे दिए जाने पर भी लातेहार की पुलिसिंग पर सवाल खड़े कर रहे हैं, क्योंकि गृह रक्षक इसके लिए प्रशिक्षित नहीं होते हैं, जबकि नक्सल क्षेत्रों में विशेष रूप से प्रशिक्षित जवानों को हाइवे गश्ती पर लगाया जाना चाहिए था।
यहां बता दें कि झारखंड में विधानसभा चुनाव पांच चरणों में होना है। पहले चरण के चुनाव की शुरूआत 3० नवंबर को होने जा रही है। ऐसे में, अब पुलिस-प्रशासन को कोई कसर छोड़ने की जरूरत नहीं है। नक्सलियों का गढ़ कहा जाने वाले गढ़वा, पलामू, लातेहार से सटे बूढ़ा पहाड़, पश्चिमी सिंहभूम, सिमडेगा, खंूटी का इलाका सारंडा वन क्षेत्र, रांची-सरायकेला खरसांवा व पूर्वी सिंहभूम के घाटशिला इलाके को हमेशा से ही नक्सलियों का सेफ जोन माना जाता है। इसीलिए इन क्षेत्रों में अधिक सुरक्षा की जरूरत है। गढ़वा, लातेहार व पाकुड़ आदि नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में पहले चरण में ही चुनाव होने हैं। लातेहार, जहां कुछ दिनों पहले ही नक्सली हमले में जवान शहीद हुए हैं। ऐसे में, पहले चरण के चुनाव की संवेदनशीलता भी समझ में आती है। पिछले रिकॉर्ड को देखा जाए तो चुनाव के दौरान नक्सली अधिक सक्रिय हो जाते हैं और वे किसी-न-किसी घटना को अंजाम देने की फिराक में रहते हैं। लोकसभा चुनाव 2०19 के दौरान भी नक्सलियों ने सरायकेला-खरसांवा में भाजपा का चुनावी कार्यालय उड़ा दिया था। 2०19 के लोकसभा चुनाव के दौरान ही नक्सलियों ने पलामू के हरिहरगंज स्थित भाजपा के चुनावी कार्यालय को उड़ा दिया था।
वहीं, 2०14 के विधानसभा चुनाव में दुमका के शिकारी पाड़ा में नक्सलियों ने चुनाव संपन्न कराकर लौट रही पोलिंग पार्टी की गाड़ी को उड़ा दिया था, जिस घटना में पांच पुलिसकर्मियों व तीन अन्य लोग मारे गए थे। इसके अलावा वर्ष 2००9 के लोकसभा चुनाव में भी नक्सली घटना को अंजाम दे चुके हैं। इस चुनाव में नक्सलियों ने दुमका के शिकारीपाड़ा में बीएसएफ के दो जवानों की हत्या कर उनके हथियार लूट लिए थे। ऐसी स्थिति में झारखंड विधानसभ चुनाव की सुरक्षा को हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए। 2० दिसंबर तक पांच चरणों में चुनाव होने हैं और 23 दिसंबर को मतगणना होगी। ऐसी स्थिति में नक्सली कहीं भी हिंसा को अंजाम दे सकते हैं। अगर, पुलिस-प्रशासन व खुफिया तंत्र की सजगता ठीक रही तो नक्सली हिंसा को अंजाम देने में कतई सफल नहीं हो पाएंगे।
झारखंड: चुनाव पर नक्सली हिंसा का साया
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