क्या दिल्ली का सिंहासन बचा पाएगी “आप” ?
बिशन पपोला
दिल्ली विधानसभा चुनावों को लेकर सरगर्मी तेज हो गई है। आम आदमी पार्टी, जहां सत्ता में दोबारा वापस लौटने के लिए जोर लगा रही है, वहीं बीजेपी और कांग्रेस भी दिल्ली की सत्ता पाने की पूरजोर कोशिशों में जुट गई हैं। यही वजह है कि दिल्ली की सत्तारूढ आम आदमी पार्टी जहां तमाम घोषणाएं करने में जुटी हुई है, वहीं केंद्र की बीजेपी सरकार ने कुछ समय पूर्व सैकड़ों अनियमित कॉलोनियों को नियमित कॉलोनी में तब्दील करने का फैसला कर एक बड़ा दांव खेला है। अगर, विकास की बात करें तो बीजेपी की राजनीति अमूमन इसी के इर्द-गिर्द घूमती है, जबकि अरविद केजरीवाल की सरकार शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहतर करने का दम भरती है, लेकिन दिल्ली की ओवर ऑल स्थिति को देखा जाए तो शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं बेहतर होने का दायरा बहुत छोटा है। दूर-दराज की स्थितियां आज भी खराब हैं। स्वास्थ्य सेवाओं में क्रांति लाने के लिए मोहभंग क्लिीनिक का फूर्मला पूरी तरह दिल्ली में फेल हो चुका है। आज मोहभंग क्लिीनिक अययाशी के अड्डे बने हुए हैं। इसीलिए विपक्ष के पास सरकार के खिलाफ मुों की कोई कमी नहीं है।
वहीं, दूसरी तरफ दिल्ली सरकार के पास असली मुख्य मुों को छुपाने के लिए बिजली, पानी व महिलाओं के लिए नि:शुल्क यातायात और कुछ स्कूलों और अस्पतालों की वह तस्वीर मात्र है, जिनमें कुछ बदलाव किए गए हैं। लेकिन इसके पीछे भी सवाल यह उठ रहा है कि क्या दिल्ली सरकार द्बारा मुफ्त में चीजें बांटने की, जो झड़ी लगाई जा रही है, वह जायज है, क्योंकि इससे विकास की गति तो रूक जाएगी ? अगर, जनता का पैसा यूहीं मुफ्त सुविधाएं देने में लुटाया जाएगा तो संसाधनों को कैसे बढाया जाएगा ? जनता के बीच इस सवाल का जबाब देना निश्चित ही केजरीवाल सरकार के लिए भारी पड़ेगा। विपक्षी पार्टियां भी इन्हीं सवालों के गोले दागने की पूरजोर कोशिशों में जुटी हुईं हैं।
ऐसे में, दिल्ली की सत्ता को लेकर संघर्ष कड़ा होने वाला है। दूसरे राज्यों में और गत लोकसभा चुनावों में करारी शिकस्त मिलने की वजह से अरविद केजरीवाल के लिए दिल्ली विधानसभा चुनाव और भी चुनौतियों से भर गया है। यही वजह है कि मई के महीने में लोकसभा चुनाव में करारी हार झेलने के एकदम अगले ही दिन आम आदमी पार्टी दिल्ली विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुट गई थी और उसने दिल्ली में तो केजरीवाल’ कैंपेन शुरू कर दिया था। इस कैंपन के तहत आम आदमी पार्टी ने दूसरी पार्टियों के नेताओं को अपनी तरफ खींचने पर ध्यान केंद्रित किया हुआ है, क्योंकि पार्टी के लिए चुनौती इस बात की भी है कि पिछले कुछ समय के दौरान कुछ दिग्गज नेताओं ने पार्टी से किनारा कर लिया था, उन्होंने दूसरी पार्टियों का दामन थाम लिया था। ऐसे में जरूरी है कि पार्टी ऐसी खाली सीटों को भी भरे। आम आदमी पार्टी से चांदनी चौक से विधायक अलका लांबा का ही उदाहरण लेते हैं। उनके द्बारा पार्टी छोड़े जाने के बाद यह सीट खाली हो गई थी।
ऐसे में, आम आदमी पार्टी ने चार बार चांदनी चौक के विधायक रह चुके कांग्रेस नेता प्रह्लाद सिह साहनी को पार्टी में जगह दी है। साहनी केवल 2०15 का विधानसभा चुनाव हारे। इलाके में उनकी अच्छी पकड़ मानी जाती है। चांदनी चौक विधानसभा सीट से प्रह्लाद सिह साहनी का आम आदमी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ना तय माना जा रहा है। दूसरा सुरेंद्र कुमार ने भी पिछले हफ्ते ही आम आदमी पार्टी का दामन थामा है। सुरेंद्र कुमार 2००8 में बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर पहली बार गोकुलपुर से चुनाव जीते थे, जबकि 2०13 में उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ा और 32,966 के साथ दूसरे नंबर पर रहे थे। 2०15 का विधानसभा चुनाव सुरेंद्र कुमार ने बीएसपी के टिकट पर लड़ा और 3०,०8० वोटों के साथ वो तीसरे नंबर पर रहे हैं।
ऐसे में साफ है कि सुरेंद्र कुमार गोकुलपुर के मजबूत नेता हैं। वह आम आदमी पार्टी में आने से पहले बीजेपी में थे। सुरेंद्र कुमार की पार्टी में एंट्री से माना जा रहा है कि मौजूदा विधायक फतेह सिह का टिकट कट सकता है और सुरेंद्र सिह गोकुलपुर से आप के उम्मीदवार बन सकते हैं।
इसके अतिरिक्त धनवती चंदेला भी आम आदमी पार्टी का दामन थाम चुकी हैं। धनवती चंदेला अगस्त महीने में आम आदमी पार्टी में शामिल हुई हैं। धनवती चंदेला राजौरी गॉर्डन क्षेत्र से तीन बार कांग्रेस पार्षद रह चुकी हैं। चंदेला के पति दयानंद चंदेला 2००8 से 2०13 तक इस इलाके के कांग्रेस विधायक रहे हैं। 2०15 के चुनावों में यह सीट आम आदमी पार्टी ने जीत ली थी, लेकिन जरनैल सिह के इस्तीफा देने के बाद वह उपचुनावों में इस सीट पर आम आदमी पार्टी उम्मीदवार की जमानत जब्त हुई, जबकि धनवती चंदेला की बहू कांग्रेस उम्मीदवार मीनाक्षी चंदेला 25,95० वोटों के साथ दूसरे नंबर पर रही। इस इलाके में चंदेला परिवार का अच्छा खासा रुतबा माना जाता है, इसीलिए यह भी तय माना जा रहा है कि राजौरी गार्डन से आम आदमी पार्टी का उम्मीदवार चंदेला परिवार से ही होगा।
इसके अलावा भी कई और सीटों के लिए कांग्रेस और बीजेपी के बड़े और मजबूत नेताओं से आम आदमी पार्टी नेताओं की बातचीत की चर्चा है, लेकिन अतत: यह देखने वाली बात निश्चित ही होगी कि आम आदमी पार्टी का यह फार्मूला भी कितना काम आएगा, क्योंकि पार्टी के पास इस वक्त फार्मूला आजमाने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं है। वैसे तो दिल्ली में आम आदमी का वोट बैंक अच्छा
खासा है, लेकिन अक्सर, देखने में यह भी आता रहा है कि सत्तारूढ पार्टी के प्रति जनता का मोहभभंग भी जल्दी होता है, क्योंकि सरकार विकास की रफ्तार को हर वर्ग तक नहीं पहुंचा पाती है। दिल्ली में आम आदमी पार्टी ने पिछले पांच साल के दौरान जो काम किए हैं, उसमें भी इसी बात की छवि देखने को मिलती है। लिहाजा, जनता के बीच दोनों ही तरह की तस्वीर दिखाई दे रही है। अगर, सरकार के प्रति नरमी है तो आक्रोश का ग्रॉफ भी कम नहीं है। ऐसे में, इस तबके को आम आदमी पार्टी कैसे गोलबंद कर पाएगी, यह भी एक बड़ा सवाल है। दिल्ली के जिन इलाकों में सुविधाएं नहीं हैं और बिजली व पानी का बहुत सारा बिल माफ करने का ऐलान किया गया है, लेकिन वहां दोनों ही चीजों की किल्ल्त बनी है। उन क्षेत्रों में चुनावी कैंपन के दौरान पार्टी के नेता क्या मुंह लेकर जाएंगे, पार्टी के लिए यह चुनौती भी किसी सिरदर्द से कम नहीं है। इसके विपरीत दिल्ली में मुख्य विपक्षी दल के पास हर अव्यवस्था का ठींकरा केजरीवाल सरकार पर फोड़ने का पूरा मौका है, क्योंकि उन्हें अपने कार्यों को डिफेंड करने नहीं करना है, बल्कि केजरीवाल सरकार की कमियों को उजागर करना मात्र है। कार्यों को डिफेंड करने के मुकाबले कमियों को उजागर करना अधिक आसान होता है। ऐसे में, बीजेपी कितना परिस्थितियों व सत्तारूढ आम आदमी पार्टी की दोराहे की तस्वीर को भेद पाएंगी, यह देखना भी वाकई दिलचस्प होगा।
क्या दिल्ली का सिंहासन बचा पाएगी “आप” ?
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