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    जारी है वंशवाद

    Devanand SinghBy Devanand SinghSeptember 2, 2020No Comments5 Mins Read
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    “जारी है वंशवाद”
    ————————
    दुनिया के अनेक देशों के हरेक क्षेत्र में आजकल एक बात स्पष्ट रूप से दिखाई और सुनाई दे रहा है , जो प्रतिभा को कुचलने के लिए भी जाना जाता है, वह है ‘वंशवाद’। वंशवाद को स्पष्ट करने के लिए हम कह सकते हैं कि एक हीं व्यक्ति के पीढी दर पीढी के लोगों के द्वारा प्रत्यक्ष रुप से किसी भी संस्थान में स्वामित्व स्थापित करना।

    वंशवाद दुनिया के लिए नया शब्द नही है। दुनिया तो इस.शब्द के साथ लम्बे समय से सफ़र कर रही है। वंशवाद का यह सफर किसी भी देश के किसी क्षेत्र में हम देख सकते हैं ,कहीं अत्यधिक तो कहीं कम लेकिन है सभी जगह।
    आज हम देंखे तो हरेक क्षेत्र में यह वंशवाद हावी है। चाहे राजनीति के क्षेत्र हो, आर्थिक क्षेत्र हो, धार्मिक क्षेत्र हो मनोरंजन का क्षेत्र हो, या इस तरह के और क्षेत्र सभी में वंशवाद स्थापित है। यह वंशवाद राजतंत्र से प्रारंभ होकर प्रजातंत्र तक, वैदिक काल से लेकर आधुनिक काल तक, पृथ्वीराज कपूर से लेकर बोनी कपूर तक, हरेक समय अलग अलग क्षेत्रों में यह आपको दिखलाई देगा।

    वंशवाद का विषय और इसका कैनवास काफी विस्तृत है, इसलिए. संपूर्णता में दृष्टिपात कर उसे कलम बद्ध करना आसान नहीं है, इसीलिये हम बाकी क्षेत्रों को छोडकर दो क्षेत्र में भारत के अंदर चल रहे वंशवाद और उसके परिणाम पर चर्चा करेंगे। यह क्षेत्र होगा राजनीति और मनोरंजन। क्योंकि यही दोनो क्षेत्र आजकल चर्चा में है।

    राजनीति क्षेत्र में वंशवाद की बात करें तो प्रजातंत्र में भी प्रमुख राजनीतिक दलों में राजतंत्र की झलक दिखाई देती है। क्षेत्रीय पार्टियों की तो बात अलग है इस वंशवाद से तो राष्ट्रीय पार्टियां भी अछूती नहीं हैं।
    प्रजातंत्र में राजनीति में वंशवाद की शुरुआत करने का श्रेय देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस को ही जाता है। देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु जी के द्वारा शुरू किया गया यह परिपाटी श्रीमती इंदिरा गांधी, संजय गांधी, राजीव गांधी, सोनिया गांधी, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी अब शायद प्रियंका गांधी बाडरा के बच्चे भी आ जाएं।इसी तरह सिंधिया परिवार, पायलट परिवार, दीक्षित परिवार, रेड्डी परिवार, बहुगुणा परिवार, हुड्डा परिवार इत्यादि की लम्बी सूची है जो वंशवाद की उपज हैं।

    एक दूसरी राष्ट्रीय पार्टी जो अपने को दूसरी पार्टियों से हटकर मानती थी(भाजपा) आज उसके अंदर भी वंशवाद चलने लगा। वसुंधरा राजे हों, यशवंत सिन्हा, जसवंत सिंह, साहेब सिंह वर्मा, गोपीनाथ मुंडे, प्रमोद महाजन, राजनाथ सिंह, अश्विनी चौबे,सहित अनेक ऐसे नेता हैं जिनके बच्चे इस वंशवाद की बदौलत हीं सांसद विधायक बने।

    अगर हम क्षेत्रीए पार्टियों की बात करें तो राजद, सपा, जेएमएम, एआईडीएमके, डीएमके, वाईएसआर, शिरोमणि अकाली दल, जदएस,नेशनल कॉन्फ्रेंस, बीजद,तृणमूल, शिवसेना इत्यादि राजनीतिक दल तो पारिवारिक प्राईवेट लिमिटेड बनकर रह गए हैं।
    अब इन तमाम पार्टियों के नेताओं(आजकल इनके लिए शोसल मीडिया में प्रचलित शब्द चमचे, अंधभक्तों) से पूछने पर रटा रटाया जबाब मीलेगा- ” इनके अंदर क्षमता थी पारिवारिक मामला नहीं है” । जबकि सच्चाई यही है कि इनमें से अधिकांश तो ऐसे हैं जो बिना खानदानी कृपा के अपने बदौलत मंडल की जिम्मेदारी संभालने लायक भी नहीं हैं। लेकिन राजतंत्र से जारी वंशवाद आज स्वार्थ लोलुप कार्यकर्ताओं और अंधभक्ति से भरे समर्थकों की बदौलत लोकतंत्र में भी कम नहीं हुआ है।

    इसी तरह हम मनोरंजन क्षेत्र की और नज़र दौडाएं तो उधर भी वंशवाद की जड़ें काफी गहरी दिखाई देती है। कपूर परिवार, देओल परिवार, बच्चन परिवार, खान परिवार, चौपडा परिवार, धर्मा प्रोडक्शन, भट्ट परिवार ऐसे अनेक परिवार आपको दिखाई देंगे, जिनका बोलबाला हीं नहीं इस जगह उनका वंशवाद चलता है। इस वंशवाद के चक्रव्यूह में फंसने से कितने लोगों ने अपना कैरियर हीं बर्बाद नहीं किया , बल्कि कितनो नें तो अवसाद में आकर अपनी जीवन लीला ही समाप्त कर ली। इसी वंशवाद के चलते अच्छे अच्छे अभिनेता अभिनेत्री अपनी प्रतिभा साबित करने के बाद भी किनारे लगा दिए जाते हैं , या मनोरंजन की दुनिया को छोडकर दूसरी और जाने को मजबूर हो जाते हैं।

    आज वंशवाद केवल राजनीति और मनोरंजन के क्षेत्र में लगे प्रतिभासंपन्न लोगों का हीं नुकसान नहीं कर रहा, ब्लकि नैसर्गिक राजनीति और वास्तविक अभिनय युक्त मनोरंजन से भी लोगों को दूर कर रहा। अच्छे से अच्छे राजनेता इसके शिकार हुए तो अच्छे से अच्छे कलाकार भी जिनके नाम जग जाहिर. हैं, इसलिए बताने कि आवश्यकता नहीं है।

    बहरहाल जिस तरह से दुनिया ने करवट बदला. है और अर्थ प्रधान होती दुनिया में जिस तरह के परिवर्तन हो रहे हैं, उससे निकट भविष्य में वंशवाद से मुक्ति मिलना संभव नहीं दिखता। मैने तो केवल दो क्षेत्रों में वंशवाद पर हल्की दृष्टि डाली है । आप देखेंगे तो अनेक क्षेत्रों में यही स्थिति दिखाई देगी।
    अंततः मैं कहना चाहूंगा की वंशवाद ने न केवल प्रतिभाओं को मारा है बल्कि इसने विविध क्षेत्रों में नए कृतिमान स्थापित होने से बंचित किया है। अगर हम देश और दुनिया में खा़सकर राजनीति और मनोरंजन क्षेत्र में कुछ नया देखना चाहते हैं तो वंशवाद को खत्म करना होगा, जो निकट भविष्य में संभव नहीं दिख रहा।

    ” ज्ञान चक्षु खोलें सभी, करलें यह याद।
    जहां नज़र दौडाएं वहीं दिखता है वंशवाद।। ”

    राकेश कुमार पाण्डेय
    सहायक प्राध्यापक/ रंगकर्मी
    ग्रेजुएट कॉलेज, जमशेदपुर।
    31/08/2020

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