बिशन पपोला पूरी दुनिया पर छाई कोरोना महामारी की काली छाया का संकट कम होने का नाम नहीं ले रहा है। एक अंतराल के बाद नए-नए वैरियंट सामने आ रहे हैं, जो मानव समाज को किसी न किसी रूप में प्रभावित कर रहे हैं। कोरोना की पहली और दूसरी लहर के दौरान हम सबने देखा कि पूरी दुनिया में लाखों लोगों ने अपनी जान गंवाई। यही हाल ओमिक्रोन वैरियंट की वजह से भी हो रहा है। एक और नए वायरस का खतरा भी पूरी दुनिया पर छाया हुआ है। कोरोना महामारी जब अपने चरम पर थी, उस दौरान दुनिया पर बेरोजगारी का संकट भी काफी गहरा बना हुआ था। दुनिया में करोड़ों लोग बेरोजगार थे, लेकिन आपको आश्चर्य होगा कि जब दुनिया भर में कोरोना की पहली और दूसरी लहर के समय की तरह लॉकडाउन की स्थिति नहीं है और कामधंधे चलने लगे हैं, उसके बाद भी बेरोजगारी का आलम उसी तरह बना हुआ है। बल्कि बेरोजगारी का औसत घटने के बजाय बढ़ ही गया है। जी हां, अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन यानि आईएलओ की रिपोर्ट ‘वर्ल्ड एम्प्लॉयमेंट एंड सोशल आउटलुक – ट्रेंड 2022’ में इस बात का खुलासा हुआ है। रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि 2022 यानि इस साल के दौरान दुनिया भर में बेरोजगार लोगों की संख्या 20.7 करोड़ तक रह सकती है। आश्चर्यजनक बात यह है कि यह आंकड़ा 2019 के मुकाबले लगभग 11 फीसदी यानि 2.1 करोड़ अधिक है। रिपोर्ट के मुताबिक 2022 के दौरान काम के जो घंटों में कमी आने का अनुमान है, वह भी 5.2 करोड़ फुल टाइम नौकरियों के बराबर है, जो 2019 की चौथी तिमाही से मिलती जुलती है। यह आंकड़ा भी चिंताजनक है, क्योंकि अगर, 2021 से जुड़े आंकड़ों को देखें तो उस समय काम के जिन घंटों में कमी आई थी, वह करीब 2.6 करोड़ पूर्णकालिक नौकरियों के बराबर थी, यानि यह अंतर लगभग 50 फीसदी के आसपास है। भले ही, रिपोर्ट में इस बात का भरोसा जताया गया है कि 2021 की तुलना में स्थिति में सुधार हो सकता है और 2022 में काम किए गए समय यानि घंटों में महामारी से पहले की तुलना में 2 फीसदी की कमी आ सकती है, लेकिन वैश्विक स्तर पर बेरोजगारी की यह स्थिति अगले साल 2023 तक महामारी से पहले के स्तर पर नहीं पहुंच सकती, इसीलिए अभी सुधार के लिए इंतजार तो करना ही होगा। बेरोजगारी की जो खराब स्थिति बनी हुई है, वह डेल्टा और ओमिक्रॉन के कारण बनी हुई है। खतरा जिस तरह बढ़ रहा है, उसी अनुसार कामधन्धों पर भी असर देखने को मिल रहा है, लिहाजा श्रम शक्ति भागीदारी दर भी नीचे गिरने का अनुमान है। रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि इस साल वैश्विक श्रम शक्ति भागीदारी दर 2019 की तुलना में 1.2 फीसदी नीचे रह सकती है। 2019 में यह दर 60.5 फीसदी थी। वहीं, 2020 में यह घटकर 58.6 फीसदी पर पहुंच गई थी और 2021 में थोड़ा सुधार हुआ था और यह औसत 59 फीसद पर पहुंच गया था। आईएलओ का अनुमान है कि यह दर इस साल 59.3 और अगले साल यानि 2023 में 59.4 फीसदी पर पहुंच सकती है। अगर, दो-तीन सालों के दौरान बेरोजगारों के आंकड़ों की तुलना करें तो बेरोजगारों का आंकड़ा 2019 में 18.6 करोड़ था, जबकि 2020 में 22.4 करोड़ पर पहुंच गया था और 2021 में कुछ सुधार के साथ 21.4 करोड़ पर पहुंच था, लेकिन इस साल 2022 में यह आंकड़ा 20.7 करोड़ और 2023 में 20.3 करोड़ पर पहुंच जाएगा। वैश्विक स्तर पर बेरोजगारी दर 2019 में 5.4 फीसदी थी, 2020 में बढ़कर 6.6 फीसदी पर पहुंच गई थी। 2021 में 6.2 फीसदी और 2022 में इसके 5.9 फीसदी और 2023 में 5.7 फीसदी रहने का अनुमान है। यानि यह स्थिति उन लोगों के परिपेक्ष्य में काफी चिंताजनक है, जो बेरोजगारी से जूझ रहे हैं। भारत की स्थिति से हम सभी अवगत हैं। लाखों-लाख लोगों की नौकरियां कोरोना काल के दौरान गईं हैं। सरकार भी बेरोजगारी कम करने के लिए कुछ खास उपाय नहीं कर पाईं थी और जो बजट सरकार ने पेश किया है, उसमें भी बेरोजगारी कम करने के संबंध में खास पहल नहीं की है, खासकर मध्यम वर्ग को जिस तरह बजट में हांसिये पर रखा गया है, उससे बेरोजगारी या यूं कहें कि आर्थिक तंगी से बाहर निकलने में वक्त लगेगा। सरकार देश में संसाधनों को बढ़ाना चाहती है, इसका सभी स्वागत करते हैं, लेकिन जिस रोजगार के मामले ने कोरोना के दौर में लोगों को काफी मायूस किया है, उस संबंध में भी सरकार की तरफ से बेहतर पहल की उम्मीद की जा रही थी और सरकार को निश्चित ही इस तरफ कदम उठाने चाहिए, तभी बेरोजगारी से जूझ रहे वर्ग के बीच फैली मायूसी कम हो पाएगी।