नगर निकायों का कार्यकाल 28 तक , सरकारी बाबुओं को मिलेगा आजादी
मुकेश रंजन संवाददाता
रांची : झारखंड के 34 नगर निकायों का कार्यकाल 28 अप्रैल को समाप्त हो रहा है। इसके साथ ही नगर निकायों में जनता द्वारा चुनकर भेजे गए जनप्रतिनिधियों को मिले अधिकार भी खत्म हो जाएंगे। नगर निकायों के बोर्ड के भंग होते ही मेयर, डिप्टी मेयर, अध्यक्ष और वार्ड पार्षद अधिकार विहीन हो जाएंगे। 28 अप्रैल के बाद नगर निकायों में सिर्फ सरकारी बाबुओं की चलेगी और लोगों को काम कराने के लिए पार्षदों की जगह पदाधिकारियों के चक्कर लगाने पड़ेंगे। गर्मी में जल संकट वाले मुहल्लों में लोगों के लिए पानी का टैंकर बुलाना हो,
जन्म-मृत्यु प्रमाण पत्र बनाना हो, स्ट्रीट लाइट लगवानी हो, मुहल्ले या घरों से कचरे का उठाव कराना हो या फिर प्रधानमंत्री आवास का पैसा चाहिए, तो लोग चहलकदमी करते हुए वार्ड पार्षद के दफ्तर पहुंच जाया करते हैं या फोन कर पार्षद को अपनी परेशानी की जानकारी देकर काम करवा लिया करते हैं। कार्यकाल समाप्त के बाद अगले मई माह से यह सब इतना आसान नहीं होगा। नगर निकायों के पदाधिकारियों पर जनप्रतिनिधियों का दबाव खत्म हो जाएगा। तो सरकारी बाबुओं का मनमानी और बढ़ जाएगी। लोग परेशान होंगे। लोगों को यह परेशानी तब तक झेलनी होगी, जब तक नगर निकायों के चुनाव संपन्न होकर बोर्ड का गठन नहीं हो जाता।
नगर निकायों के बोर्ड भंग होने से शहरों में चल रही योजनाओं में जनता की भागीदारी भी समाप्त हो जाएगी। अभी पार्षदों की अनुशंसा पर मुहल्लों के विकास की योजना तैयार होती है।कौन सी सड़क जरूरी है, कहां स्ट्रीट लाइट लगनी चाहिए, पानी का टैंकर कहां आना चाहिए, नाली किस रास्ते से जाएगी, किसे प्रधानमंत्री आवास मिलना चाहिए, यह सब अभी जनता के सहयोग से वार्ड पार्षद तय करते हैं, लेकिन जब नगर निकायों का बोर्ड भंग हो जाएगा, तो अफसर अपने मन-मुताबिक योजनाएं तैयार करेंगे। योजना लागू करने के लिए जनप्रतिनिधियों और जनता की स्वीकृति लेने की जरूरत नहीं पड़ेगी. । जनता की जरूरतों का आकलन किए बिना भी योजनाएं लागू हो जाएंगी।