सोशल मीडिया पर नीतीश की हो रही है किरकिरी महेश भारती ने समाचार विचार पर रखें अपने विचार
बिहार में अवसरवादी जातिवादी राजनीति की शुरुआत 1967 के लोहिया के ग़ैर कांग्रेस वाद से खुलकर सामने आयी। उस वर्ष बनी संविद सरकार में अवसरवादी परिचय देते हुए वामपंथी और जनसंघ ने सिद्धांत को तक पर रखकर सोशलिस्ट ग्रुप के साथ मिलकर सरकार बना ली। अवसरवादी वीपी मंडल, कर्पूरी ठाकुर, सत्येन्द्र नारायण सिंह जैसे लोगों के गुट ने बहुमत के बावजूद जातिवादी सोच के तहत महेश प्रसाद सिन्हा को मुख्यमंत्री बनने नहीं दिया। उन्हें डर था कि इससे कांग्रेस मजबूत हो जाएगी।अवसरवादियों ने कई कई मुख्यमंत्री बदले। सतीश प्रसाद भोला पासवान, वीपी मंडल, महामाया सिन्हा, कर्पूरी ठाकुर उसी अवसरवादी राजनीति के मुख्यमंत्री थे।
वर्ष 1971 में जनसंघ के साथ सरकार बनाने की बहुमत लिए रामानंद तिवारी को अवसरवादी कर्पूरी ठाकुर ने एकतावादी समतावादी बनाकर बेवकूफ बना दिया और मुख्यमंत्री बनने नहीं दिया। बाद में खुद गिरगिट की तरह रंग बदलकर जनसंघ के सहयोग से मुख्यमंत्री बन गए। बेचारे रामानंद तिवारी को यह मलाल बना रहा।
वर्ष 1991 में लालू और मंडल लहर के बीच जीतकर आए जार्ज फर्नांडिस और नीतीश कुमार ने 1994 में समता पार्टी बना ली और लगातार भाजपा के साथ राजनीति करते रहे। अवसरवादियों को राजनीति का मौसम वैज्ञानिक कहा जाने लगा। नीतीश कुमार ने वर्ष 2005 से वर्तमान के घटनाक्रम तक अवसरवादी राजनीति का जो खाका खींचा है,वह लोकतांत्रिक राजनीति के लिए शर्मनाक ही कहा जा सकता है। भारत में ये तो बिहार की बानगी भर है ऐसे उदाहरण भारतीय राजनीति में राज्य से केन्द्र तक भरे पड़े हैं।
आज की तो पूरी राजनीति इसी पर टिकी है। दल-बदल कानून बनने के बावजूद अवसरवादी पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। घृणित और घृणित तरीके से उनके रूप प्रकट होने लगे। कल एक आदमी ने मजाक में कहा अवसरवादियों की जमात के हेडमास्टर कर्पूरी ठाकुर जी को जब केन्द्र की भाजपा की नरेन्द्र मोदी सरकार ने भारत रत्न दिए तो नीतीश कुमार को तो इस विशेषज्ञता के लिए विश्व रत्न पुरस्कार से उन्हें नवाजना चाहिए।