बिशन. एस
लोकसभा चुनाव बीत गया है, लेकिन अगले कुछ महिनों में चार राज्यों में विधानसभा चुनाव अभी होने हैं। ये सभी राज्य राजनीतिक रूप से काफी महत्वपूर्ण हैं, इनमें दिल्ली, हरियाणा, झारखंड और महाराष्ट्र शामिल हैं। चुनाव को देखते हुए इन राज्यों की सरकारों ने लोकलुभावन फैसले लेने शुरू कर दिए हैं। इन चार राज्यों में विधानसभा की 529 सीट हैं, जिनमें से 216 पर बीजेपी विधायक हैं। कांग्रेस के पास सिर्फ 59 सीटें हैं। आम आदमी पार्टी (आप) के 66 और शिवसेना के 63 विधायक हैं। ऑल ओवर स्थिति देखी जाए तो तीनों राज्यों में बीजेपी का गणित और केमिस्ट्री दोनों मजबूत नजर आ रहे हैं।
हरियाणा, झारखंड और महाराष्ट्र में बीजेपी की सरकार है, जबकि दिल्ली की आम आदमी पार्टी के पास है। बीजेपी का फोकस दिल्ली की सत्ता हासिल करने पर है, क्योंकि अरविंद केजरीवाल उस पर सबसे अधिक हमलावर नेताओं में से एक हैं। लोकसभा चुनाव में बंपर जीत के बाद बीजेपी के हौसले बुलंद हैं, इसीलिए इन राज्यों में बीजेपी जीत के पक्के इरादे के साथ उतरेगी। आइए, सियासी समीकरणों पर एक नजर डालते हैं।
झारखंड
यहां बीजेपी सत्ता में है और रघुवर दास प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं। 82 विधानसभा सीटों वाले इस प्रदेश में 81 सीटों में निर्वाचन होता है और एक सदस्य नामित किया जाता है। 2014 में बीजेपी को 37 सीटें मिली थीं। आजसू पार्टी को मिला कर बहुमत मिला था। बाद में, झारखंड विकास मोर्चा के 6 विधायक बीजेपी में आ गए थे, फिर सरकार की चिंता खत्म हुई। फिलहाल, पार्टी के पास 43 सीटें हैं। झारखंड मुक्ति मोर्चा के 19, जबकि झारखंड विकास मोर्चा (प्रजातांत्रिक) के पास आठ विधायक हैं। इस साल नवंबर-दिसंबर में चुनाव संभव हैं। झारखंड की 14 लोकसभा सीटों में से 11 जीतकर बीजेपी के हौंसले बुलंद हैं। बीजेपी विधानसभा चुनाव की तैयारियों में लग गई है, वह यहां अबकी बार 60 के पार का नारा दे रही है। बीजेपी का पक्ष इसीलिए भी मजबूत माना जा रहा है कि उसके कार्यकाल में राज्य में विकास को एक नई दिशा मिली है। पांच साल का कार्यकाल पूरा करने वाली भी सरकार बन गई है। राज्य में लहर भी बीजेपी की तरफ है। ऐसे में, उम्मीद की जा रही है कि राज्य में एक बार फिर बीजेपी सत्ता में लौट सकती है।
हरियाणा
हरियाणा में विधानसभा की 90 सीटें हैं, पिछला चुनाव अक्टूबर 2014 में हुआ था। बीजेपी ने यह चुनाव बिना चेहरे के लड़ा था। पीएम नरेंद्र मोदी की अगुआई में बीजेपी ने कांग्रेस के गढ़ रहे इस प्रदेश में 47 सीटें जीतीं, जिसकी बदौलत उसने पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई। आरएसएस प्रचारक मनोहरलाल खट्टर को सीएम बनाया गया, तब उन्हें बीजेपी के अंदर और बाहर भी ‘नौसिखिया’ कहा जाता था, लेकिन खट्टर ने निकाय चुनाव में शानदार प्रदर्शन करके अपने विरोधियों के मुंह पर ताला लगा दिया। हरियाणा की सभी 10 लोकसभा सीटें भी बीजेपी की झोली में आ गई हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि बीजेपी मनोहरलाल खट्टर के ही चेहरे पर यहां का विधानसभा चुनाव लड़ेगी। जींद उप-चुनाव जीतने के बाद बीजेपी के पास 48 सीट हो गईं हैं। इनेलो और कांग्रेस के पास सिर्फ 17-17 सीटें हैं। इस बार भी दोनों की पार्टियों से बहुत ज्यादा उम्मीद नहीं की जा रही है।
दिल्ली
दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की सरकार है। आम आदमी पार्टी (आप) के पास पहले 70 में से 67 सीटें थीं, लेकिन अब घटकर 66 रह गईं हैं। बीजेपी ने लोकसभा की सभी सातों सीटें जीत ली हैं, केंद्र में उसकी सरकार है, इसीलिए जाहिर सी बात है उसके हौंसले बुलंद हैं। यहां के तीनों नगर निगमों पर बीजेपी का कब्जा है, लेकिन केजरीवाल को शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली और पानी के लिए जमीनी स्तर पर किए गए अपने काम पर भरोसा है। अरविंद केजरीवाल ने महिलाओं के लिए मेट्रो और बस में मुफ्त सफर का ऐलान किया है। इस फैसले को भी उनकी चुनावी तैयारियों से जोड़कर देखा जा रहा है। आप नेताओं का कहना है कि लोकसभा चुनाव में भले ही जनता ने बीजेपी को चुना है, लेकिन विधानसभा चुनाव में उसे ही मौका देगी। यहां बीजेपी के पास सिर्फ चार सीट हैं। कांग्रेस भी वापसी के लिए पूरजोर कोशिश करने में जुटी हुई है। उम्मीद है कि जनवरी 2020 में चुनाव हो सकता है।
महाराष्ट्र
महाराष्ट्र में बीजेपी का शासन है। सत्ता की कमान देवेंद्र फड़नवीस के पास है। 288 सीटों वाले प्रदेश में बीजेपी के पास सबसे अधिक 122 विधानसभा सीट हैं। उसकी सहयोगी शिवसेना के पास 63 और विपक्षी दल कांग्रेस के पास 42 और एनसीपी के पास 41 सीट हैं। ना-नुकुर करते-करते बीजेपी और शिवसेना ने लोकसभा चुनाव साथ लड़ा, जिसमें बीजेपी ने 23 और शिवसेना ने 18 सीटें जीती। एनसीपी ने 4 सीटें, जबकि कांग्रेस ने सिर्फ एक सीट हासिल की। ऐसे में, यहां पावरफुल गठबंधन बीजेपी-शिवसेना का ही है। हार की निराशा में घिरी कांग्रेस के लिए यहां चुनाव की डगर काफी कठिन नजर आ रही है।
सीट बंटवारे का पेंच
महाराष्ट्र में इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और शिवसेना गठबंधन के बीच सीटों के बंटवारे को लेकर अभी कोई अंतिम फैसला नहीं हुआ है, इससे पहले 50-50 फॉर्मूले की काफी चर्चा हो चुकी है, लेकिन माना जा रहा है कि यह सीट बंटवारे का व्यावहारिक फॉर्मूला नहीं होगा। 2014 के विधानसभा चुनाव के दौरान दोनों पार्टियों ने सीटों पर सहमति न होने के बाद अलग-अलग चुनाव लड़ा था।
बीजेपी की तरफ से ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि वह राज्य की कुल 288 विधानसभा सीटों में से 135 से अधिक सीटों की मांग कर सकती है। कुछ क्षेत्रीय पार्टियों को शामिल करते हुए बड़ा गठबंधन बनाने के लिए बीजेपी और शिवसेना दोनों को 135-135 सीटों पर सहमत होना पड़ेगा, जिससे बाकी 18 सीटें छोटे सहयोगियों के बीच बांटी जा सकें, लेकिन पिछले कुछ समय बीजेपी में शामिल हो रहे सिटिंग एमएलए और टिकट के दावेदारों की बढ़ती संख्या से बीजेपी के लिए 135 सीटों के कोटे पर टिके रहना मुश्किल हो रहा है। बीजेपी के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि सभी दावेदारों को संतुष्ट करने के लिए बीजेपी को कम-से-कम 150 सीटों की जरूरत है।
महाराष्ट्र विधानसभा में पार्टी के पास 122 विधायक हैं और साथ ही उसे 6 निर्दलीय विधायकों का भी समर्थन हासिल है। कांग्रेस और एनसीपी से 4 विधायकों ने इस्तीफा देकर बीजेपी का दामन थामा है। इस तरह कुल मिलाकर बीजेपी के साथ 132 वर्तमान विधायक हैं। विधानसभा में बीजेपी की वर्तमान ताकत को देखते हुए उसे 135 सीटों के फार्मूले में विधायकों और दावेदारों को समायोजित करने में दिक्कत नहीं आनी चाहिए।
महाराष्ट्र के राजस्व मंत्री चंद्रकंात पाटिल ने जून में कहा था कि बीजेपी और शिवसेना दोनों 135-135 सीटों पर लड़ेंगे, जबकि बची हुई 18 सीटें अन्य सहयोगियों के खाते में जाएंगी। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और अमित शाह दोनों लोग कह चुके हैं कि बीजेपी-शिवसेना साथ-साथ विधानसभा चुनाव लड़ेंगी। बता दें कि विधानसभा में शिवसेना के पास 63 सीटें हैं।
2014 विधानसभा चुनाव में टूटा था गठबंधन
दो दशक से ज्यादा वक्त के बाद 2014 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी-शिवसेना का गठबंधन टूट गया था। बीजेपी ने 260 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ते हुए 27.81 प्रतिशत वोट (122 सीटें) हासिल किए थे। वहीं, शिवसेना ने 282 सीटों पर चुनाव लड़ा और उसे 19.35 प्रतिशत वोट (63 सीटें) मिले। इसके साथ ही कांग्रेस और एनसीपी ने भी अलग-अलग चुनाव लड़ा था। कांग्रेस ने 287 सीटों पर चुनाव लड़ा और 17.95 प्रतिशत वोटों के साथ 42 सीटें जीतीं। एनसीपी ने 278 सीटों पर चुनाव लड़ते हुए 17.24 प्रतिशत वोट शेयर के साथ 41 सीटों पर कब्जा जमाया था।