मोब लिंचिंग वाया जंगल राज
सत्येंद्र
देश में न्याय तंत्र कि जगह भीड़ तंत्र के हाथ में न्याय दंड दिखने लगा हैं. यह सामान्य तो नहीं हुआ है किन्तु इसके कुछ नमूने सामने आने लगे हैं. भीड़ तंत्र के इस न्याय को अंग्रेज्जी में मोब लिंचिंग का नाम दिया गया है. हाल ही में सराईकेला -खरसावां जिला के धतकीडीह में चोरी के आरोप में एक युवक तबरेज़ की बुरी तरह ग्रामीणो ने पिट कर उसे पुलिस को सौप दिया.जेल में उस कैदी की तबियत बिगड़ी और वो मर गया. यह युवक कदमडीहा का एक मुसलमान था .
ग्रामीणों का आरोप है की तबरेज़ अपने तीन दोस्तों के साथ आया था और चोरी की नियत से एक घर में घुस गया तभी गृहमालिक ने शोर मचा दिया. दो तो भाग गए किन्तु तबरेज़ का पीछा कर ग्रामीणों ने उसे पकड़ लिया और जम कर पीटा.गावं के कुछ पगलैट तबरेज़ को जय श्रीराम और जय बजरंग बलि बोलने को विवश कर दिया.
मॉब लिंचिंग के नाम पर नेतागण और राजनीतिक पार्टियां अपनी रोटी सेकने को लगे हुए है. सबसे गंभीर बात है की मॉब लिंचिंग देश को जंगलराज की ओर ले कर जा रहा है. जंगल राज याने जिसके हाथ में लाठी उसी की चलेगी. जैसे को तैसा तुरंत दंड. संविधान और नियम कानून भाड़ में जाए.
भारत जैसे लोकतान्त्रिक देश में मॉब लिंचिंग जैसी घटनाएं एक बहुत बड़े खतरे की घंटी है. आश्चर्य की बात है कि मॉब लिंचिंग को मानवता के नाम पर शर्मनाक बताए जाने की जगह उसे मुसलमानों पर हमले के रूप में देखा जा रहा है. चिंता कि बात यह भी कि मुस्लिम समुदाय भी इस मामले को एक मानव पर हमले कि जगह मुस्लमान पर हमले के रूप में देख रहा है. तबरेज़ कि मॉब लॉन्चिंग से कुछ लोग इस्लाम पर खतरा बता रहे हैं. मेरा मानना है मॉब लिंचिंग के नाम पर धर्म की दुहाई देने का सीधा मतलब है कि आप देश की अस्मिता और देश के संविधान के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं और इतना ही नहीं आने वाली पीढ़ी में विष के बीज बो रहे हैं जिसे आप ,आपका खानदान, आपका जाति, आपका धर्मही नहीं पूरा देश इस विष की फसल काटेगा . बेहतर होगा कि मॉब लिंचिंग को हम लोग माननीय सभ्यता पर खतरे के रूप में देखी ना कि जाति और धर्म पर हमले के रूप में देखें.
साहब या फैशन नहीं चलेगा की भीड़ द्वारा पीट-पीटकर मार डाले गए व्यक्ति को मुसलमान अथवा हिंदू के नजरिए से देखें, सवर्ण अथवा दलित के नजरिए से देखें. वास्तव में इस मामले को हमें जंगलराज के प्रति समाज में बढ़ती दीवानगी के रूप में इस खतरे को देखना चाहिए. अगर हम नहीं समझे और इमानदारी से इस मसले को नहीं देखे, तो इसके दुष्परिणाम झेलने के लिए भी हमें तैयार रहना चाहिए.
कोई चोरी करते पकड़ा जाए अन्य कांड करते पकड़ा जाता है तो हमारे देश में संविधान है, कानून है, कार्यपालिका, न्यायपालिका और विधायिका है. हमें संविधान के अंगों पर भरोसा करना चाहिए और उन्हें काम करने देना चाहिए ताकि दोषियों को सजा सुनिश्चित कर सकें.
साथियों एक सच्चाई यह भी है की मॉब लिंचिंग जैसी घटनाएं पुलिस और न्यायपालिका पर जनता के घटते विश्वास का भी प्रतीक है. इसलिए हमें चाहिए कि हम सरकार को दबाव बनाएं कि आप हमारी पुलिसिंग और हमारी न्यायपालिका को ज्यादा प्रभावशाली, रिजल्ट ओरिएंटेड और कम समय में दायित्व निर्वाहन करने के लायक बनाएं. अत्याचारी और बलात्कारी सजा सुनाने में कोर्ट को १० वर्ष को लग जाएंगे तब भला आम जनता जंगलराज को क्यों ना पसंद करें, जहां तुरंत सजा देने का प्रावधान है. इसलिए मॉब लिंचिंग के नाम पर विधवा विलाप छोड़िए और इस समस्या की जड़ में जाइए.
हमें अपने देश कि police, न्यायपालिका में आमूलचूल बदलाव करना होगा और उन्हें टाइमबॉन्ड में काम करने के लिए कहें अन्यथा आज की तेज गति के जमाने में कोई पुलिस के पास मामला दर्ज कराने के लिए घूस देने अथवा थाने का चक्कर लगाने और इतना कुछ करने के बाद न्याय के लिए दशकों तक न्यायपालिका के पास दौड़ लगाने के लिए तैयार नहीं है.
कहने का मतलब यह कि मॉब लिंचिंग की जड़ में जाइए साहब. नेतागिरी चमकाना छोड़िये, आप वामपंथी हैं या दक्षिणपंथी यह मायने नहीं रखता. मायने रखता है कि आप कितने मानव पंथी हैं जब इंसान में मानवीयता ही ना रहेगी, दया ही ना रहेगी तब इंसान इंसान नहीं रहेगा जंगली जानवर बन जाएगा और जंगली जानवर की आस्था आपके संविधान, आज की कार्यपालिका, आपकी न्यायपालिका और आप की विधायिका में नहीं रहेगी बल्कि उसे तो जंगलराज चाहिए जंगलराज. अगर ऐसी बात है तो आप आने वाले दिनों में और भी मौत लिंचिंग की घटनाएं देखने, सुनने और उसका शिकार बनने के लिए तैयार
लेखक खबर मंत्र अखबार जमशेदपुर के ब्यूरो चीफ हैं