अभ्यास करते युवा।

मुहर्रम पर्व प्रेम व भाईचारे का संदेश देता है:अहमद

निजाम खान

बागडेहरी/जामताड़ा: मुहर्रम पर्व करीब आते देख कुंडहित प्रखंड क्षेत्र के बिक्रमपुर,सटकी,पांचकुड़ी,बाघाशोला,नवडीहा आदि गांवों के मुस्लिम समूदायों के लोग अखाड़ा खेल के लिए अभ्यास करना शुरू कर दिया है।अखाड़ा खिलाड़ियों द्वारा रात जगकर खेल का अभ्यास किया जा रहा है।आपको बता दे बिक्रमपुर में हर साल शांतिपूर्वक भाईचारे के साथ पांच दिनों तक अखाड़ा खेल दिखाया जाता है।बच्चे,बूढ़े,मर्द व महीलाए सभी बड़े उत्साह के साथ अखाड़ा खेल का आनंद लेते है।मालूम हो कि जिलेभर में 10 सितंबर को मुस्लिम समुदाय मुहर्रम पर्व मनायेंगे।
इन खेलों का हो रहा है अभ्यास
बिक्रमपुर के आजाद पार्टी,तुफान पार्टी और अलीबाबा मिलन संघ पार्टी द्वारा अखाड़ा खेल में करतब दिखाने के लिये दो लाठी,चार लाठी,बाहुबली,12 लाठी,16 लाठी,बल्लम,टांगी,बाना,बल्लाम वालीबल ,टी,एस,वाई,786,चांदतारा,92,सहित आदि अन्य विभिन्न प्रकार के खेल का अभ्यास किया जा रहा है।जिसके लिये अखाड़ा खेल के कप्तान जफरुल्लाह खान,इंसान खान,सब्बीर खान व कमीटि के बोदन खान,सापुई खान,जुल्फीकार खान,सिसमोहम्मद खान,आजाद्दीन खान,उद्दीन खान जी-जान लगाकर मेहनत करते दिखाई दे रहे है।
कॉमेडी का भी है रिवाज
अखाड़ा खेल में लाठी,बाना,बल्लम के साथ-साथ कामेडी दिखाने का भी रिवाज है।हास्य कलाकर भी विभिन्न प्रकार के कर्तब दिखाते है।जिससे लोग खुब हसकर लोटपोट हो जाते है।
कैसे होता अखाड़ा खेल
मुहर्रम में अखाड़ा का खेल खुसकी के दिन से आरंभ होता है।जो लगातार मिंजील मिट्टी तक होता है।जानकारी के अनुसार शुक्रवार को खुसकी,शनिवार को दोपहरीया,रविवार को रिक्त,सोमवार को जियारत और मंगलवार को मिंजील मिट्टी है।रात में खेल दिखाया जाता है।खेल दिखाने के पूर्व अखाड़ा में असार बांधकर लोगों को अदब के साथ प्रणाम किया जाता है।अखाड़ा के वरिष्ठ खिलाड़ी सापुई खान बताते है कि खेल दिखाने के लिये वाद्ययंत्र का होना बहुत जरूरी होता है।बिना ढोलक,बांसूरी या वैंजो के अखाड़ा का करतब दिखाना संभव नही होता है।
मुहर्रम प्रेम का संदेश देता है:अहमद
बिक्रमपुर रजा जमा मस्जिद के पेश ईमाम हज़रत अल्लामा हाफ़ीज़ व कारी अह़मद अली रिजवी बताते है कि मुहर्रम समाज में सभी लोगों को आपस में प्रेम व भाईचारे के साथ रहने की सिख देता है।
ताजिया घुमाने का भी है रिवाज
मिंजील मिट्टी के दिन ताजिया को गांव-गांव कंधे में घुमाया जाता है।लोग ताजिया को सलाम/प्रणाम करते है तथा शिरनी/प्रसाद के लिए चावल,दाल व पैसे दान करते है।
मातम भी करते है लोग
मुहर्रम पर्व यूं ही तो गम का पर्व है।जिसके लिये लोग विशेस रूप से दोपहरीया के दिन मातम करते है।या हसन-या हुसैन सें गांव गूंजने लगता है।लोग मुहर्रम में रोजे भी रखते है।गौरतलब है कि मुहर्रम में रोजा रखना फर्ज/ अनिवार्य नही है।रखने से सवाब/पूण्य का काम होता है।वही मिंजील मिट्टी की रात को लोग कब्रस्तान में अल्लाह के बारगाह में दोनों हाथों को उठाकर फातिहा व दूआएं मांगकर जियारत करते है।
मुहर्रम के लिए हो रही तैयारीयां
मुस्लिम समुदाय के लोग मुहर्रम पर्व मनाने की तैयारी में जुट गये है।गली व अखाड़ा में झंडे लगाया जा रहा है।स्वच्छता पर भी विशेष ध्यान दिया जा रहा है।गली-मुहल्ले की साफ-सफाई की जा रही है।लोग घर की भी रंग-रंगाई भी करने में जूट गये है।
