*■ सखी मंडल की दीदी सशक्तिकरण की पेश कर रही है मिशाल एवं अपने परिवार को नई दिशा दे रही है….*
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*■ खूद ईजाद हुई तरक्की की राह अब औरों के लिए बन गई एक नई मिशाल….*
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*■ महिला स्वयं सहायता समूहों ने महिला सशक्तिकरण की पेश की अनुठी मिशाल…*
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देवघर जिला अंतर्गत पालोजोरी प्रखण्ड के विभिन्न पंचायतों में पत्रकार भ्रमण कार्यक्रम के दौरान कचुआसोली पंचायत पहुंचकर नन्दकुरा गांव की महिलाओं के कार्य को देखा। यहां की महिलाएं सशक्तिकरण की एक नई मिशाल पेश कर रही है। स्वयं सहायता समूह की महिलाओं ने देखते-देखते एक नया बाजार अपने लिए खड़ा कर लिया है। खूद ईजाद हुई उनकी तरक्की की राह अब औरों के लिए एक नई मिशाल बन गई है। यहां की महिलाएँ आपस में स्वयं सहायता समूह बनाकर सूप, डाली, झाड़ु, पैन स्टेड, गुलदस्ता स्टेंड, मचिया, फुलदान, बांस की टोकरी, घरेलू सजावट के समान, घर सजाने वाली बांस की वस्तुएँ आदि का निर्माण कर मुनाफा कमा रही हैं।
*■ एक छोटी सी कोशिश और सवर गई जिंदगी….*
एक छोटा सा प्रयास एक साथ कई महिलाओं को अपने पैरों पर खड़ा कर देता है। इसका जीता-जागता उदाहरण ग्राम संगठन की महिलाएं है। सरकार व जिला प्रशासन के सहयोग से नन्दकुरा गांव की महिलाओं ने वह कर दिखाया, जो कतई आसान नहीं था। अपनी मेहतन और लगन से एक नई मिशाल बनाकर आज दूसरों को भी अपने पैरों पर खड़े होने के लिए प्रेरित कर रही है। आज सरकार द्वारा मिलने वाले अनुदान के माध्यम से इन महिलाओं ने छोटे स्तर से शुरू किये अपने इस काम को वृहत कर लिया है। लगभग 50 महिलाओं के अलग-अलग समूहों द्वारा इस कार्य को किया जा रहा है। इससे वे आत्म निर्भर हो पा रही है एवं अपने आय से घर परिवार के लिए कुछ बचत भी कर पा रही है। महिलाओं द्वारा इस प्रकार का स्वरोजगार करने का सबसे बड़ा लाभ यह है कि उन्हें काम करने के लिए अपने घर से दूर नहीं जाना पड़ता है और वे अपने हुनर से हीं घर बैठे रोजगार कर पाती है। साथ हीं बच्चों का लालन-पालन भी आसानी से काम करते हुए कर लेती है।
सुनीता हेंब्रम ने बताया कि लोग घर के काम के बाद ऐसे बैठे रहती थी लेकिन जेएसएलपीएस द्वारा समूह बनाकर लोन दिया गया उसके बाद वे लोग बांस निर्मित वस्तुओं का उत्पादन कर प्रत्येक दीदी प्रत्येक दिन 150 से 200 रूपये कमा रही है। हॉट बाजारों के अलावा अन्य जिलों में भी उनके बांस निर्मित वस्तुओं को भेजे जाते हैं।
*■ रोशन आरा ने बैंक सखी बनकर लोगों के घर तक पहुचाया बैंक को….*
पालोजोरी के आस्ता गांव की रोशन आरा स्नातक पास है, जो जेएसएलपीएस के माध्यम से सखी मंडल का गठन किया तथा आईडीएफसी से जुड़कर बैंक सखी बनी और प्रशिक्षण प्राप्त कर आधार भुगतान, एटीएम भुगतान की मशीन के माध्यम से घर-घर जाकर बैंकिंग सेवा दे रही है। 24 घंटे घर से ग्रामीण रुपए लेन-देन करती है। पी0एम0 आवास योजना, वृद्धा पेंशन सहित अन्य योजनाओं की भुगतान वह करती है।
अब 1000 से अधिक लोगों का खाता खोलकर बचत की और लोगों को ले जा रही है। सात पंचायतों में बराबर घूमती हैं। प्रत्येक माह 42 लाख का ट्रांजैक्शन कर लगभग 10 हजार मासिक आय प्राप्त कर रही है।
*■ बंजर भूमि में सब्जी की खेती कर हुई स्वयं सहायता समूह की महिलाएं स्वाबलंबी…..*
पालोजोरी के कुंजड़ा गांव में महिला समूह द्वारा 5 एकड़ बंजर भूमि में करेला, झींगा की खेती कर 80 से 90 हजार का फसल बिक्री कर चुकी है। प्रत्येक दिन 40 50 किलो करेला का उपज हो रहा है। समूह की विधियों द्वारा बताया गया कि बंजर भूमि से आय होने से उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार आ रही है। पालोजोरी के बलजोरी गांव में महिला समूह द्वारा खेत में श्रीविधि से खेती की गई, जिसमें 10 प्रकार के धान लगाए गए हैं। दीदी ने बताया कि पिछले वर्ष 90 मन धान की उपज किया गया था इस बार 115 मन धान उपज की संभावना है साथ ही बताया कि 10 तरह के धान इस बार इसलिए लगाया गया है जिस की उपज ज्यादा होगी अगली बार उसे ही लगाया जाएगा।
*■ श्रीविधि से धान की खेती कर रही है स्वयं सहायता समूह की महिलाएं….*
पालोजोरी प्रखण्ड के बलजोरी पंचायत के हरतोपा गांव की महिलाएं श्रीविधि के माध्यम से धान की खेती कर रही है। अलग-अलग किस्म के धान की खेती एक ही खेत में लगाकर बेहतर किस्म का धान का चयन कर खेतों के अनुकूल खेती कर रही है। कम पानी, कम यूरिया के बाद भी ज्यादा उपज कर पा रही है स्वयं सहायता समूह की महिलाएं। इस विधि में मजदूर भी कम लगते है। परम्परागत तरीके की अपेक्षा खाद एवं दवा कम लगती है। प्रति पौधे कल्ले की संख्या और बालियों में धानों की संख्या ज्यादा होती है। धानों का वजन और उपज दो गुना होती है।
*■ खरपतवार का नियंत्रण…..*
इस विधि में खरपतवार नियंत्रण के लिए हाथ से चलाए जाने वाले वीडर का इस्तेमाल किया जाता है। वीडर चलने से खेत की मिट्टी हल्की हो जाती है और उसमें हवा का आवागमन ज्यादा हो जाता है। इसके अतिरिक्त खेतों में पानी न भरने देने की स्थिति में खरपतवार उगने को उपयुक्त वातावरण मिलता है।
*■ सिंचाई एवं जल प्रबंधन….*
इस विधि में खेत में पौध रोपण के बाद इतनी ही सिंचाई की जाती है जिससे पौधों में नमी बनी रहे। परंपरागत विधि की तरह खेत में पानी भर कर रखने की आवश्यकता नहीं होती है।
*■ रोग व कीट प्रबंधन…..*
इस विधि में रोग और कीटों का प्रकोप कम होता है, क्योंकि एक पौधे से दूसरे पौधे की दूरी ज्यादा होती है। जैविक खाद का उपयोग भी इसमें सहायक है। कई प्राकृतिक तरीके और जैविक कीटनाशक भी कीट प्रबंधन के लिए उपयोग किए जाते हैं।

