नई दिल्ली: प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई को यौन उत्पीड़न के आरोपों से उच्चतम न्यायालय की 3 न्यायाधीशों की आंतरिक समिति ने क्लीन चिट देते हुए कहा है कि उसे उनके खिलाफ कोई ठोस आधार नहीं मिला। शीर्ष अदालत की एक पूर्व महिला कर्मचारी ने प्रधान न्यायाधीश पर यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए थे।
उच्चतम न्यायालय के सेक्रेटरी जनरल के कार्यालय की एक नोटिस में कहा गया है कि न्यायमूर्ति एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली समिति की रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की जाएगी। समिति में 2 महिला न्यायाधीश न्यायमूर्ति इन्दु मल्होत्रा और न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी भी शामिल थीं।समिति ने एकपक्षीय रिपोर्ट दी, क्योंकि इस महिला ने 3 दिन जांच कार्यवाही में शामिल होने के बाद 30 अप्रैल को इससे अलग होने का फैसला कर लिया था। महिला ने इसके साथ ही एक विस्तृत प्रेस विज्ञप्ति जारी करके समिति के वातावरण को बहुत ही भयभीत करने वाला बताया था और अपना वकील ले जाने की अनुमति नहीं दिए जाने सहित कुछ आपत्तियां भी उठाई थीं। इसके बाद प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई भी 1 मई को समिति के समक्ष पेश हुए थे और उन्होंने अपना बयान दर्ज कराया था।नोटिस में कहा गया है कि आंतरिक समिति को शीर्ष अदालत के पूर्व कर्मचारी की 19 अप्रैल 2019 की शिकायत में लगाए गए आरोपों में कोई आधार नहीं मिला। इंदिरा जयसिंह बनाम शीर्ष अदालत और अन्य के मामले में यह व्यवस्था दी गई थी कि आंतरिक प्रक्रिया के रूप में गठित समिति की रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की जाएगी। आंतरिक प्रक्रिया के अनुसार ही दूसरे वरिष्ठतम न्यायाधीश ने यह रिपोर्ट स्वीकार की और इसकी एक प्रति संबंधित न्यायाधीश, प्रधान न्यायाधीश को भी भेजी गई।इस बीच एक सरकारी सूत्र ने बताया कि न्यायमूर्ति एनवी रमण, न्यायमूर्ति बोबडे के बाद वरिष्ठतम न्यायाधीश थे लेकिन रिपोर्ट उन्हें नहीं सौंपी गई, क्योंकि शुरू में वे भी इस समिति के सदस्य थे, परंतु बाद में शिकायतकर्ता महिला की कुछ आपत्तियों के मद्देनजर वे इससे अलग हो गए थे।