ललित गर्ग
देश में नरेन्द्र मोदी सरकार की दूसरी पारी की विधिवत शुरुआत हो गई है। उन्होंने दूसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। उनके साथ उनके मंत्रिमंडल के 57 सदस्यों ने भी शपथ ली और उनको जिम्मेदारियों एवं दायित्वों से भी बांध दिया गया है। अमित शाह गृह मंत्रालय संभालेंगे तो राजनाथ सिंह रक्षा मंत्रालय एवं निर्मला सीमारमण को वित्त मंत्रालय का कार्यभार दिया गया हैं। पिछली सरकार के अनेक चेहरों को पुराने ही विभाग बांटे गये हैं। मंत्रिपरिषद में नए चेहरों की उपस्थिति नई सरकार को और प्रभावी बनाने एवं बेहतर परिणाम देने वाली बनायेगी, ऐसा विश्वास है। देखने में आ रहा है कि यहां व्यक्ति और मंत्रालय का महत्व नहीं है, महत्व है काम करने का, देश को निर्मित करने का। हमारे कर्णधार पद की श्रेष्ठता और दायित्व की ईमानदारी को व्यक्तिगत अहम् से ऊपर समझने की प्रवृत्ति को विकसित कर मर्यादित व्यवहार करना सीखें तभी शासन एवं शासक की गरिमा है। देखने में आता रहा है कि राजनेता जीत के बाद केवल पद व शोभा को ही ओढ़ लेते हैं, जबकि दायित्व और चुनौतियां उनसे कई गुना ज्यादा होती हैं। इस प्रकार के दृश्य ऊपर से नीचे तक नजर आते रहे हैं, जहां नियोजन में कल्पनाशीलता व रचनात्मकता का नितांत अभाव ने देश को रसातल में पहुंचा दिया था और उनके लक्ष्य सोपान पर ही लड़खड़ाते रहे थे। मोदी ने राजनीति में नियमितता तो सिखाई ही है उन्होंने राजनीति को मुद्दों, स्वहित- स्वार्थ, लाॅबी, ग्रुपबाजी से भी मुक्त किया। सिद्धांत और व्यवस्था के आधारभूत मूल्यों को आधार बनाकर सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक स्तरों को उन्नत किया है।
हमारी राजनीति की विडम्बना रही है कि उसमें सत्य को ढका जाता रहा है या नंगा किया जाता रहा है पर स्वीकारा नहीं गया। और जो सत्य के दीपक को पीछे रखते हैं वे मार्ग में अपनी ही छाया डालते हैं और इस तरह पराजय के शिकार होते हैं। समाज को विनम्र करने का हथियार मुद्दे या लाॅबी नहीं, पद या शोभा नहीं, ईमानदारी है। और यह सब प्राप्त करने के लिए ईमानदारी के साथ सौदा नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि यह भी एक सच्चाई है कि राष्ट्र, सरकार, समाज, संस्था व संविधान ईमानदारी से चलते हैं, न कि झूठे दिखावे, आश्वासन एवं वायदों से। मोदी ने न सत्य को ढका और न नंगा किया, बल्कि सत्य को जीया। उनकी जीत सत्य की जीत है।
निश्चित ही भाजपा एवं मोदी-सरकार के सामने उन्हें मिले अपार समर्थन एवं लोगों की बढ़ी हुई जागृत अपेक्षाओं पर खरे उतरने की चुनौती हैं। जो पिछली अपेक्षाओं से पूरी तरह अलग है। बेशक राष्ट्रीय सुरक्षा मोर्चे पर जगे स्वाभिमान ने भाजपा को ऐतिहासिक चुनावी विजय दिलाने में केन्द्रीय भूमिका निभाई है और जिसकी वजह से बेरोजगारी, जीएसटी, नोटबंदी, आर्थिक नीतियों के मोर्चे पर पिछले पांच साल के दौरान उत्पन्न चुनौतियां नेपथ्य में चली गईं परन्तु अब इन चुनौतियों का सामना नई सरकार को करना होगा क्योंकि इनका सीधा सम्बन्ध आम आदमी की रोजी-रोटी और व्यक्तिगत विकास से है। विशाल बहुमत की नौका पर बैठकर मोदी सरकार को भारत की उन समस्याओं का ठोस समाधान ढूंढना होगा जो युवा पीढ़ी के सामने मुंह बाये खड़ी हैं। इनमें सबसे ज्यादा भयावह स्थिति बेरोजगारी की है जो पिछले पांच दशकों में चरम सीमा पर है। इसके साथ ही भारत के धुर दक्षिणी राज्यों के लोगों की अपेक्षाओं पर भी खरा उतरना होगा जिन्होंने भाजपा को समर्थन देने में अपना हाथ खींचे रखा है। मोदी की राजनीति में यह मसला मुख्य चुनौती के रूप में हैं, संभव है अगले चुनावों में इन राज्यों में भी भाजपा को भारी बहुमत मिले।
सवाल सिर्फ समस्याओं से ही नहीं जुड़े हंै बल्कि संकल्पों से भी जुड़े हैं। सवाल यह है कि नये भारत की दिशा क्या होगी? हम न तो कम्युनिस्ट विचारधारा के पोषक हैं और न स्वच्छन्द पूंजीवाद के। हमने गांधीवाद का समता, संयम एवं संतुलन का रास्ता पकड़ा है जिसमें ‘दरिद्र नारायण’ को अभीष्ट माना गया है। यह व्यक्ति की अधिकतम निजी आवश्यकताओं की सीमा को तो स्वीकार करता है परन्तु न्यूनतम सीमाओं की जीवनोपयोगी सहजता को भी स्वीकार करता है और सम्पत्ति का अधिकार भी देता है और सरकार को जन कल्याणकारी तेवर देता है। इसका मतलब यही है कि सरकार के लिये सत्ता स्वार्थसिद्धि नहीं बल्कि एक मिशन है। हम अच्छाइयों का स्वर्ग जमीन पर नहीं उतार सकते पर बुराइयों के खिलाफ संघर्ष अवश्य कर सकते हैं और इसी संघर्ष ने मोदी को विश्वास के साथ बुलन्द ऊंचाइयां दी है। मोदी का दूसरा कार्यकाल हमारी पात्रता में वृद्धि करे। देश की जनता को स्वाभिमान से जीने का आश्वासन मिले। आत्मसंयम आत्मगौरव का माध्यम बने, राजनीति को व्यवसाय एवं स्वार्थ का नहीं, सेवा का माध्यम बनाया जाये, यह अपेक्षित है। संसदीय जीवन में राष्ट्रवादी वैचारिक कलेवरों के तहत सामाजिक-आर्थिक समस्याओं की समीक्षा में लोकपक्ष की व्याख्या हो और उसका जीवन सहज एवं सरल बने। नई सरकार संसद से लेकर सड़क तक आर्थिक नीतियों का लोकोन्मुख चेहरा उजागर करने में सक्षम बने, तभी कुछ अनूठा एवं विलक्षण होता हुआ दिखाई देगा। बहुत से लोग काफी समय तक दवा के स्थान पर बीमारी ढोना पसन्द करते हैं पर क्या वे जीते जी नष्ट नहीं हो जाते? खीर को ठण्डा करके खाने की बात समझ में आती है पर बासी होने तक ठण्डी करने का क्या अर्थ रह जाता है? हमें लोगों के विश्वास का उपभोक्ता नहीं अपितु संरक्षक बनना चाहिए।
मोदी ने राजनीति की नयी परिभाषाएं गढ़ी है, उन्होंने जीत के भी सर्वोच्च शिखर निर्मित किये हैं, अनेक सम्बोधन, सर्वोच्च पद, अनेक सम्मान-पुरस्कार प्राप्त करके भी जो व्यक्ति दबा नहीं, बदला नहीं, गर्वित नहीं हुआ अपितु जब-जब ऐसी जीत, सर्वोच्च सत्ता एवं अलंकरणों से भारी किया गया तब-तब वह ”नरेन्द्र“ बनता गया। वह हर बार कहता रहा कि, ”मैं नरेन्द्र हूँ, नरेन्द्र ही रहना चाहता हूँ।“ नरेन्द्र चाय वाले से शुरु उनकी राजनीतिक यात्रा नरेन्द्र यानी स्वामी विवेकानन्द बनने तक बस वो प्रकाश सूर्य बनता गया।
वह इसलिए महान् नहीं कि सफलतम एवं शहंशाही शासक हैं। उसके करोड़ों चाहनेवाले एवं प्रशंसक हैं। बड़ी-बड़ी हस्तियां उनसे मिलने को आतुर रहती हैं। उसकी झलक पाने के लिए देश-विदेश के कोने-कोने से आ-आ करके लोग कतार बांधे रहते हैं। बल्कि वह इसलिए महान् है कि वे स्व-कल्याण नहीं परोपकार के लिये तत्पर है, उनके शासने में सब एक संतोष, एक तृप्ति महसूस करते हैं। कहते हैं कि वटवृक्ष के नीचे कुछ भी अन्य अंकुरित नहीं होता, लेकिन इसके मार्गदर्शन में लाखों व्यक्तित्व पल्लवित हुए हैं, हो रहे हैं। घड़ी का तीन-चैथाई वक्त राष्ट्र-कल्याण के लिए देने वाला व्यक्ति निजी नहीं जनिक होता है। जब किसी का जीवन जनिक हो जाता है तब निजत्व से उभरकर बहुजन हिताय हो जाता है। निजत्व गौण हो जाता है। मोदी ऐसा ही अनूठा व्यक्तित्व है।
मोदी महात्मा गांधी और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को अपना आदर्श मानकर एक आदर्श एवं समतामूलक समाज संरचना के लिये प्रतिबद्ध हैं। उन्होंने राष्ट्रपिता को यथोचित सम्मान देने एवं उनके सिद्धान्तों पर चलने का संकल्प व्यक्त किया है। अपने इस कदम के जरिये उन्होंने चुनावी माहौल में पैदा हुई इस आशंका को निर्मूल कर दिया कि दूसरी बार पूर्ण बहुमत से सत्ता में आई भाजपा महात्मा गांधी से जुड़े प्रतीकों और नीतियों को खास महत्व नहीं देगी। यह भी कि अटलजी की सबको साथ लेकर चलने और अपने विरोधियों को भी गले लगाने वाली सोच इस सरकार का दिशा निर्देशक तत्व बनी रहेगी। राष्ट्र की सुरक्षा को लेकर उनकी सरकार की प्रतिबद्धता और संकल्प इस बात का द्योतक है कि भारत अब भय एवं डर के माहौल में नहीं जीयेगा, बल्कि डराने वाले के जीवन में डर भर देगा। शायद इसी वजह से गृह मंत्रालय का दायित्व उन्होंने अमित शाह को दिया है, जिन्होंने पार्टी को इतना सशक्त बना दिया तो राष्ट्र अवश्य सशक्त और सुरक्षित होगा।
प्रधानमंत्री भारत को विश्वगुरु बनाने की ओर अग्रसर है। इसीलिये उन्होंने न सिर्फ देश बल्कि दुनिया भर के महत्वपूर्ण लोगों के साथ अपनी खुशी और उपलब्धि साझा की। शपथ ग्रहण समारोह में करीब आठ हजार मेहमानों को आमंत्रित किया गया था। विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्री, मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस सहित विभिन्न राजनीतिक दलों के नेता और उद्योग, फिल्म, अध्यात्म, धर्म, संस्कृति, साहित्य, मीडिया तथा खेल जगत के महारथी इस समारोह में शामिल हुए। बिम्सटेक सदस्य देशों के नेता इसके खास आकर्षण रहे। पिछले कुछ वर्षों में बिम्सटेक को मजबूती से खड़ा करने में भारत का अहम योगदान रहा है। नरेंद्र मोदी की वापसी से इसे और फलने-फूलने का मौका मिलेगा। यह शपथ ग्रहण समारोह प्रधानमंत्री और उनके सहयोगियों के साथ-साथ पूरे देश के लिए एक खास अवसर था एवं खास महोत्सव था। भारत में ऐसा पहली बार हुआ जब एक पार्टी के पूर्ण बहुमत वाली कोई गैर कांग्रेसी सरकार लगातार दूसरी बार सत्ता में आई है। यह महज एक चुनावी जीत नहीं, सामाजिक-आर्थिक विकास की एक यात्रा है जिसके सूत्रधार नरेंद्र मोदी बने।