निजाम खान
आज भी खलती है दादाजी की याद. पर वह भले ही हमारे बीच ना हो लेकिन दादाजी की कुछ आदतों का पालन हमसे हो ही जाता है. सप्ताह में 1 दिन पर्व मनाते हैं.वह दिन है शुक्रवार .शुक्रवार के दिन जुम्मा की नमाज अदा करने के लिए सवेरे से ही तैयारियां शुरू कर दी जाती है.मेरा कपड़ा तो मां जी धोकर साफ सफाई कर देती थी,पिताजी का भी कपड़ा मां जी ही साफ कर देती थी. पर दादाजी स्वयं ही कपड़ा खींच कर साफ कर लेते थे.मैंने 10 वर्ष की उम्र तक दादा जी को एक ही स्थान पर स्नान करते देखा है. गांव में 2 नदियां बहती हैं एक का नाम हिंगलो नदी और दूसरे का नाम के खेपा( पागल )नदी.खेपा नदी गांव के लोग इसलिए कहते हैं क्योंकि इसमें जब तब अचानक बाढ़ जाता है. अचानक बाढ़ बढ़ जाता है घट भी जाता है.दोनों नदिया के मिलन हमारे गांव में ही हो गया है.ठीक इसी के 10 कदम आगे दादा स्नान करते हैं. इस जगह को पूर्व में जोगी पत्ता कहा जाता था. जोगी पत्ता कहने की वजह यह थी कि वहां जोगी का पेड़ था आज भी कुछ लोग जोगी पत्ता ही कहते हैं. मैंने यहां जोगी के गाछ को कभी नहीं देखा है पर अब इसे ज्यादातर लोग कदम ताला कहते हैं.क्योंकि यहां एक कदम का पेड़ था .मैंने इस पेड़ का कदम फल भी खाया है .यह पेड़ नदी में बाढ़ आ जाने से गिर गया ,क्योंकि यहां नदी के किनारे ही था .इस पेड़ का कदम फल इतना स्वादिष्ट था कि इसमें चढ़कर हमारे पड़ोसी का गिरकर हाथ भी टूटा है .बचपन से ही मैं दादाजी के पास ही में रहता था .स्नान तो मैं दादा जी के साथ ही करता था. दादाजी एक अलग सिद्धांत के व्यक्ति थे. स्नान करते समय भी धर्म का पालन करते हैं. नहाने के समय वजू करते हैं .तीन-तीन बार हाथ ,नाक ,आंख,चेहरा की सफाई करने के साथ ही सिर के बाल ,कान की भीतरी हिस्सा और तलवा सहित पैरों की अच्छी तरह सफाई करना वजू कहा जाता है. दादा जी नहाने के दौरान जिस तरह धर्म का पालन करते थे मैं भी उनका देखकर कॉपी करता था. एक बार की बात है दादा जी स्नान कर घर आ गए थे, पर हमको संयोग से उस दिन किसी कारणवश नहीं ले गए थे .मैं काफी जिद्दी था .मैं दोबारा दादा जी को स्नान करवाया. दादा जी जिस जगह स्नान करते हैं उसी जगह स्नान किया और वजू भी करवाया. दादाजी को लोग पुराना मुखिया जी कहते थे. दादा जी पूर्व में पंचायत के मुखिया भी रह चुके हैं .जवानी में ही दादा जी चल बसी थी. हमारे छोटे चाचा और छोटी बुआ को भी मेरी दादी जी याद नहीं आती है. दरअसल गांव में चेचक का कहर गिर गया था जिससे रोजाना लोग मरते थे .इसी की शिकार मेरी दादी जी भी हो गई थी. बचपन में मां जी से पूछता था मैं जी दादी जी कैसी थी. मां बताती थी कि मैं बाबू देखा नहीं है.मैं दादाजी को हमेशा कुछ न कुछ पूछता रहता था इसी बीच मैंने एक दिन पूछ डाला है कि आप का नाम किसने रखा था .मैं बचपना में उटपटांग सवाल दादाजी से कर ही देता था. दादाजी ने बड़े प्यार से कहा कि मुझे बचपन में मेरा पिता और गांव के लोग मुझे मोची कहते थे. एक मौलवी ने मेरा नाम अब्बास अली रखा था .दादाजी की छवी आज भी लोगों के सामने काफी स्वच्छ है .दादाजी जवानी में ही विधवा हो गए. पर दोबारा शादी नहीं किया. उस जमाने में गांव की कुछ जवान लड़कियां दादा जी से शादी भी करना चाहती थी पर दादाजी ने नहीं किया. खुद दादाजी की सासू मां उसकी छोटी बेटी दादाजी के छोटी साली से शादी करवाना चाहिए. पर दादाजी ने नहीं किया .दादाजी एक ही बात कहते थे कि अगर मेरी शादी देना तो सबसे पहले हमारे बच्चे को मार दो .उनका मानना था कि सौतेली मां अपने बच्चों का सही तरीके से देखभाल नहीं करती है .इसलिए दादाजी दोबारा शादी नहीं करना चाहते थे .गौरतलब है कि दादाजी इस बीच कभी भी किसी तरह का अपने कैरेक्टर में दाग नहीं लगाया. मैंने गांव के कई व्यस्क से मेरे दादाजी के कैरेक्टर के बारे में जानने की कोशिश की .इसमें कभी भी किसी ने नहीं कहा कि वह कैरक्टरलेस थे. यह बात मैं दादाजी पर कभी संदेह के आधार पर नहीं पूछा .गांव के लोग दादाजी के पीछे नमाज भी अदा करते थे. पाक- पवित्र आदमी के पीछे ही नमाज पढ़ी जा सकती है.सभी बुजुर्ग आंखों में मोटी-मोटी चश्मा पहनते थे और हाथ में लाठी लिए घूमते थे. मैं भी दादाजी को लाठी लेकर घूमने को कहते थे. दादाजी हंसते थे. हमारी बचपना थी हम समझ नहीं पाए थे कि दादाजी तो जवानों की तरह तंदुरुस्त है. फिर भी हमारे मन को खुश करने के लिए दादाजी हाथ में लाठी लिए कभी-कभी चल भी देते थे. अंत में दादाजी को 72 साल की उम्र में कैंसर की बीमारी के शिकार होना पड़ा.दादा जी कोई नशा नहीं किया था .लोग तरह-तरह के चर्चा करने लगे .लोगों का कहना था कि वे कभी भी किसी तरह का नशा नहीं किया फिर भी कैंसर का शिकार कैसे हो गए .अंत में दादाजी को 72 साल की उम्र में कैंसर से पीड़ित होकर जान गवा देंनी पड़ी।