श्यामल सुमन
खतरों भरा सफर लगता है
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प्यारा सा मंजर लगता है
सच लिखने से डर लगता है
कर सवाल तो देशद्रोह का
तुरत यहाँ मोहर लगता है
तीखे आज सभी के तेवर
बोली यार जहर लगता है
रोटी बिनु बहुमत जीते जब
जीवन तभी कहर लगता है
न्याय भीड़ के हाथों में अब
खतरों भरा सफर लगता है
छली गयी जनता दशकों से
सब कुछ इधर उधर लगता है
लोक जागरण सुमन जरूरी
सूना गाँव शहर लगता है
सादर
श्यामल सुमन
(यह कवि के निजी विचार है)