आदिवासी समाज को मुख्य घारा से जोडऩे की अहम जिम्मेदारी मिली अर्जुन मुंडा को
जय प्रकाश राय
भारत में वोटबैंक की राजनीति में आदिवासी समुदाय हमेशा से ही उपेक्षित रहा है। आज तक किसी ऐसे आदिवासी चेहरा को राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित होते नहीं देखा गया। देश में जातीय राजनीति जमकर होती है। कई राजनीतिक दलों ने इसी नाम पर दुकान खोल रखी है। लेकिन आदिम जनजाति के लोगों के लिये ऐसा कोई नजर नहीं आता जो पूरे देश की आदिम जनजाति, यानि अनुसूचित जनजाति के लोगों का आवाज बन सके। यही कारण है कि जब झारखंड केपूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा को मोदी -2 सरकार में जनजाति मामलों (आदिवासी) मंत्री बनाया गया तो सभी की उनसे अपेक्षाएं बढ गयी हैं। अभी तक जो भी इस विभाग के मंत्री बने शायद वे इस जिम्मेदारी को उस तरह से नहीं निभा पाये। शायद वे ऐसा चेेहरा नहीं थे जिनसे उतनी उम्मीद की जा सके। लेकिन जब अर्जुन मुंड़ा ने कैंद्रीय कैबिनेट मे शपथ ली तो कयास लगाये जाने लगे कि उनको इस विभाग की अहम जिम्मेदारी सौंपा जा सकती है। क्योंकि वे आज की तारीख में इस सरकार के सबसे बड़े आदिवासी चेहरा हैँ। तीन बार झारखंड की कमान संभाल चुके अर्जुन मुंडा में वह काबिलियत है कि वे पूरे देश के 21 राज्यों में निवास करने वाली देश की करीब 10 प्रतिशत आदिवासी जनसंख्या को मुख्य धारा में लाने की दिशा में अहम योगदान कर सकेँ। महात्मा गांधी ने कहा था कि आजादी का मतलब तबतक पूरा नहीं हो सकता जबतक विकास की किरण समाज के अंतिम व्यक्ति तक सबसे पहले पहुंचे। ऐसा आज तक नही ंहुआ है और अंतिम पायदान पर बैठा व्यक्ति आज भी ठगा सा ही महसूस करता है। नक्सलवाद की समस्या इसी कोरिडोर में सबसे अधिक देखी गयी क्योंकि यहां के लोगों को यह समझानेे की कोशिश की जाती रही कि उनको सुनने वाला कोई नहीं है। जो यह बात नहीं माने उनको डराकर अपने साथ करने का प्रयास किया गया। पुलिस प्रशासन के लोगों ने भी इस बड़ी आबादी को मुख्य धारा में लाने का प्रयास नहीं किया।
आदिवासियों का कैसे उद्धार हो इस बारे में सिंहभूम चैम्बर आफ कामर्स के पूर्व अध्यक्ष, एवं विभिन्न संगठनों से जुड़े रहने वाले ए के श्रीवास्तव की यह कहना बिलकुल सही है कि आदिवासियों को उनके पास जाकर उनका विकास करना होगा। उनको शहर में लाने के बजाय उनके स्थान पर जाकर उनकी जरुरतों के अनुसार उनका विकास करना होगा। यह सही है कि आदिवासी यदि अपने मूल से अलग हुए तो फिर उनकी पहचान मिट जाएगी। वैसे भी बड़ी संख्या में आदिवासियों का धर्मपरिवर्तन कराया गया है। ऐसा इसलिये किया गया क्योंकि आदिवासियों की सुनने वाला कोई नहीं था। जल जंगल जमीन पर उनका अधिकार रहा है लेकिन वे इस मांग को पूरा करने के लिये आज दर दर की ठोकरें खा रहे हैं। उनके पास जो कुशलता, जो सहजता, जो सरलता है उसका लाभ देश को उठाना चाहिये। आदिवासी बहुल क्षेत्रों में बड़े बड़े उद्योग तो लग गये,. लेकिन आदिवासियों की दशा में कोई सुधार नहीं हुआ। उसका सीधा लाभ उनतक नहीं पहुंचाया जा सका। जिन लोगों ने आदिवासियों के नाम पर राजनीति की उन्होंने भीकेवल अपना विकास किया। समग्र आदिवासी समुदाय के लिये कुछ नहीं किया गया। पूरे देश में यही स्थिति है। जरुरत है कि बड़े उद्योगों के साथ साथ इनके लिये उनकी जरुरतों के अनुरुप कुटिर उद्योग लगाये जायेँ। हर हाथ का काम मिले इसका उपाय किया जाना चाहिये. केवल कुछ अनाज देकर या कुछ आर्थि$क सहायता के जरिये इनका विकास नहीं किया जा सकता। विकास तभी होगा जब हर हाथ को काम मिले। उनकी जरुरत के अनुरुप काम हो। कई ऐसे क्षेत्र हैं जहां आदिवासियों की कुशलता का ही देश को लाभ मिल सकता है। अर्जुन मुंडा एक ऐसे व्यक्तित्व हैं जिनको इन सारी बातो ंका पूरा भान है। खरसांवा क्षेत्र के तसर एवं सिल्क को उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय पहचान दिलाई है। तीरंदाजी एकाडमी की स्थापना कर उन्होंने कई आदिवासी प्रतिभाओं को राष्ट्रीय स्तर का तीरंदाज बनाया है। यही कारण है कि आज वे भारतीय तीरंदाजी संघ के अध्यक्ष बनाये गये हैँ। आज पहली बार देश के आदिवासी समाज के साथ साथ अन्य लोगों को भी यह अहसास हो रहा है कि अर्जुन मुंडा को एक अहम जिम्मेदारी सौंपी गयी है और उनसे अपेक्षा है कि वे न केवल जनताति समाज का उद्धार करेंगे बल्कि उनको मुख्य धारा में लाकर देश के विकास में अहम योगदान करेंगे।
लेखक हिंदी दैनिक चमकता आईना के संपादक हैं