नयी दिल्ली. अयोध्या विवाद की मध्यस्थता के सवाल पर सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को फैसला सुरक्षित रखा. आज निर्मोही अखाड़े को छोड़कर रामलला विराजमान समेत हिंदू पक्ष के बाकी वकीलों ने मध्यस्थता का विरोध किया. यूपी सरकार ने भी इसे अव्यावहारिक बताया है जबकि मुस्लिम पक्ष मध्यस्थता के लिए तैयार है. अयोध्या विवाद में मध्यस्थता के लिए सुप्रीम कोर्ट ने नाम मांगे हैं. बुधवार को कोर्ट ने करीब एक घंटे की सुनवाई के बाद आदेश सुरक्षित रखा.सुप्रीम कोर्ट में हिन्दू महासभा मध्यस्थता के लिए तैयार नहीं है. उसने कहा है कि बिना सभी पक्षों की बात सुने मध्यस्थता का आदेश नहीं दिया जा सकता. सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि हम हैरान हैं कि विकल्प आजमाए बिना मध्यस्थता को खारिज क्यों किया जा रहा है!! कोर्ट ने कहा अतीत पर हमारा नियंत्रण नहीं है पर हम बेहतर भविष्य की कोशिश जरूर कर सकते हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने मामले को लेकर कहा कि जब वैवाहिक विवाद में कोर्ट मध्यस्थता के लिए कहता है तो किसी नतीजे की नहीं सोचता. बस विकल्प आज़माना चाहता है. हम ये नहीं सोच रहे कि कोई किसी चीज का त्याग करेगा,हम जानते हैं कि ये आस्था का मसला है. हम इसके असर के बारे में जानते हैं.सुनवाई के दौरान जस्टिस बोबडे ने कहा कि हम मामले में प्रतिफल चाहते हैं. यह केवल जमीन से नहीं बल्कि लोगों की भावनाओं से जुड़ा मामला है. जब हिंदू पक्ष ने कहा कि मध्यस्थता का कोई अर्थ नहीं होगा क्योंकि हिंदू इसे एक भावुक और धार्मिक मुद्दा मानते हैं तो न्यायमूर्ति एस ए बोबडे ने कहा कि हमने भी इतिहास पढ़ा है और अतीत पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं है. हम जो कर सकते हैं वह केवल वर्तमान के बारे में है.